भैया दूज कथा | Bhai Duj Ki Katha

भैया दूज कथा | Bhai Duj Ki Katha

 

 

भैया दूज का शुभ मुहूर्त कब है 2023

देश की राजधानी दिल्ली के जाने-माने पंडित रामगणेश मिश्र के अनुसार इस साल कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि 14 नवंबर 2023 को दोपहर 02:36 बजे से प्रारंभ होकर 14 नवंबर 2023 को दोपहर 01:47 बजे तक रहेगी. चूंकि हिंदू धर्म में पर्व अक्सर उदया तिथि के अनुसार ही मनाए जाते हैं, इसलिए इस साल भाई दूज का त्योहार 15 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा. पं. रामगणेश के अनुसार इस साल बहनों द्वारा भाई को टीका लगाने के लिए शुभ मुहूर्त प्रात:काल 09 बजे से लेकर 11 बजे के बीच रहेगा.

 भाई दूज की कहानी| Bhai Duj Ki Kahani

भैया दूज के संबंध में पौराणिक कथा इस प्रकार से है। सूर्य की पत्नी संज्ञा से 2 संतानें थीं, पुत्र यमराज तथा पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर उन्हें ही अपने पुत्र-पुत्री को सौंपकर वहाँ से चली गई। छाया को यम और यमुना से अत्यधिक लगाव तो नहीं था, किंतु यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थीं।

यमुना अपने भाई यमराज के यहाँ प्राय: जाती और उनके सुख-दुःख की बातें पूछा करती। तथा यमुना, यमराज को अपने घर पर आने के लिए भी आमंत्रित करतीं, किंतु व्यस्तता तथा अत्यधिक दायित्व के कारण वे उसके घर न जा पाते थे।

एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के घर अचानक जा पहुँचे। बहन के घर जाते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। बहन यमुना ने अपने सहोदर भाई का बड़ा आदर-सत्कार किया। विविध व्यंजन बनाकर उन्हें भोजन कराया तथा भाल पर तिलक लगाया। जब वे वहाँ से चलने लगे, तब उन्होंने यमुना से कोई भी मनोवांछित वर मांगने का अनुरोध किया।

यमुना ने उनके आग्रह को देखकर कहा: भैया! यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो यही वर दीजिए कि आज के दिन प्रतिवर्ष आप मेरे यहाँ आया करेंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार किया करेंगे। इसी प्रकार जो भाई अपनी बहन के घर जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार करे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाये, उसे आपका भय न रहे। इसी के साथ उन्होंने यह भी वरदान दिया कि यदि इस दिन भाई-बहन यमुना नदी में डुबकी लगाएंगे तो वे यमराज के प्रकोप से बचे रहेंगे।

यमुना की प्रार्थना को यमराज ने स्वीकार कर लिया। तभी से बहन-भाई का यह त्यौहार मनाया जाने लगा। भैया दूज त्यौहार का मुख्य उद्देश्य, भाई-बहन के मध्य सद्भावना, तथा एक-दूसरे के प्रति निष्कपट प्रेम को प्रोत्साहित करना है। भैया दूज के दिन ही पांच दीनो तक चलने वाले दीपावली उत्सव का समापन भी हो जाता है।

इस दिन अगर अपनी बहन न हो तो ममेरी, फुफेरी या मौसेरी बहनों को उपहार देकर ईश्वर का आर्शीवाद प्राप्त कर सकते हैं। जो पुरुष यम द्वितीया को बहन के हाथ का खाना खाता है, उसे धर्म, धन, अर्थ, आयुष्य और विविध प्रकार के सुख मिलते हैं। साथ ही यम द्वितीय के दिन शाम को घर में बत्ती जलाने से पहले घर के बाहर चार बत्तियों से युक्त दीपक जलाकर दीप-दान करना भी फलदायी होता है।


भाई दूज एवं रक्षाबंधन के बीच समानता व अंतर:
भाई दूज एवं रक्षाबंधन दोनो ही भाई व बहन के बीच मनाया जाने वाले पर्व है। दोनों में पूजा करने के नियम भी लगभग समान ही हैं।

रक्षाबंधन में बहने अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बँधती हैं जबकि भाई दूज के दिन माथे पर तिलक लगातीं हैं। भाई दूज पर मुख्यतया भाइयों का अपनी विवाहित बहनों के घर जाकर तिलक लगवाते हैं। जबकि रक्षाबंधन के दिन बहने अपने भाई के घर आकर राखी/रक्षासूत्र बांधती हैं।
 

 भाई दूज क्यों मनाया जाता है

भाई दूज भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो भाई-बहन के प्यार और समर्पण को मनाने का एक अवसर प्रदान करता है। यह त्योहार हिन्दी पंचांग के कारण कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है, जो दीपावली के दो दिन बाद आता है। इसे विभिन्न राज्यों में भाई बीज, भाई-तिका, या भातृद्वितीय नाम से भी जाना जाता है।

भाई दूज पर बहनें अपने भाइयों के साथ विशेष रूप से मिठाई, तिलक, रोली, और कुमकुम के साथ उनका स्वागत करती हैं। उन्हें आशीर्वाद और बच्चों को बुराई से बचाने की कामना करती हैं। भाई दूज का महत्व इसमें है कि यह भाई-बहन के प्यार और समर्पण को स्थायी करता है और इसे एक-दूसरे के साथ आजीवन के लिए जुड़े रहने का एक मौका प्रदान करता है।

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