अन्नपूर्णा स्तोत्र संस्कृत | Annapurna Devi Mantra
अन्नपूर्णा मंत्र अर्थ सहित | Annapurna Mantra Lyrics
अन्नपूर्णा देवी हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवी हैं, जो भोजन की देवी के रूप में पूजी जाती हैं। उन्हें अन्नपूर्णेश्वरी भी कहा जाता है। अन्नपूर्णा देवी का नाम संस्कृत में "अन्न" यानी भोजन और "पूर्णा" यानी पूर्णता से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है "जो सभी प्रकार के भोजन को पूर्ण करती हैं"।
अन्नपूर्णा देवी की पूजा मुख्यतः वाराणसी (काशी) नगर में होती है, जहां उनका मंदिर स्थित है। वह विशेषकर नवरात्रि के दौरान पूजी जाती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अन्नपूर्णा देवी का मंदिर अवधूत शिव शंकर के लिए ही एकमात्र मंदिर है, जिन्होंने अपनी भिक्षुक रूपिणी पत्नी के साथ अहमदाबाद की तापुंगा नगरी में दरिद्रों को भोजन देने का संकल्प किया था।
अन्नपूर्णा देवी का दर्शन और पूजा अन्न, भिक्षा, और दरिद्रता के प्रति समर्पितता की भावना को प्रोत्साहित करती है। उन्हें भोजन की देवी माना जाता है, जो सभी जीवों को आहार प्रदान करती हैं और उन्हें संतुलित और समृद्धि भरा जीवन देती हैं।
अन्नपूर्णा भोजन मंत्र |Annapurna Bhojan Mantra
अन्नपूर्णा मंत्र खाने से पहले | भोजन मंत्र स्तुति
1. ॐ सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
परमेश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें। हम दोनों को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए। हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें। हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो। हम दोनों परस्पर द्वेष न करें। उक्त तरह की भावना रखने वाले का मन निर्मल रहता है। निर्मल मन से निर्मल भविष्य का उदय होता है।
2. अन्नपूर्णे सदा पूर्णे शंकरप्राणवल्लभे ।
ज्ञान वैराग्य-सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहिं च पार्वति ।।
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ।।
वैदिक भोजन मंत्र
भोजन के उपरांत करें इस मंत्र का जाप
अगस्त्यम कुम्भकर्णम च शनिं च बडवानलनम।
भोजनं परिपाकारथ स्मरेत भीमं च पंचमं ।।
अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः।
यज्ञाद भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद् भवः।।
अन्नपूर्णा स्तोत्र संस्कृत |Annapurna Stotra Sanskrit
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी ।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१॥
नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी ।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरे काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥२॥
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥३॥
कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी ।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥४॥
दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी ।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥५॥
उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥६॥
आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी ।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥७॥
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामं स्वादुपयोधरप्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥८॥
चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुन्तलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी ।
मालापुस्तकपाशासाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥९॥
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरश्रीधरी ।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥१०॥
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥११॥
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः ।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥१२॥
- श्री शङ्कराचार्य कृतं
भोजन मंत्र अर्थ सहित
अन्नपूर्णा बीज मंत्र |Annapurna Beej Mantra
ॐ ऐम ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवती माहेश्वरी अन्नपूर्णे
Meaning – अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ है- 'धान्य' (अन्न) की अधिष्ठात्री। सनातन धर्म की मान्यता है कि प्राणियों को भोजन माँ अन्नपूर्णा की कृपा से ही प्राप्त होता है।
प्रात:काल नित्य 108 बार अन्नपूर्णा मंत्र का जप करने से घर में कभी अन्न-धन का अभाव नहीं होता। शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन अन्नपूर्णा का पूजन-हवन करने से वे अति प्रसन्न होती हैं। करुणा मूर्ति ये देवी अपने भक्त को भोग के साथ मोक्ष प्रदान करती हैं।
सम्पूर्ण विश्व के अधिपति विश्वनाथ की अर्धांगिनी अन्नपूर्णा सबका बिना किसी भेद-भाव के भरण-पोषण करती हैं। जो भी भक्ति-भाव से इन वात्सल्यमयी माता का अपने घर में आवाहन करता है, माँ अन्नपूर्णा उसके यहाँ सूक्ष्म रूप से अवश्य वास करती हैं।
अन्नपूर्णा गायत्री मंत्र
अन्नपूर्णा गायत्री मंत्र:- ॐ भगवत्यै च विद्महे, महेश्वर्यै च धीमहि, तन्नोन्नपूर्णा प्रचोदयात् ।।
अन्नपूर्णा मंत्र के फायदे | Annapurna Mantra Benefits
अन्नपूर्णा देवी के मंत्र का जाप करने के लिए कई लोग मान्यता देते हैं और इसे अनेक फायदों का स्रोत मानते हैं। यह मंत्र भक्तियोगी और साधकों के लिए एक साधना का भी हिस्सा हो सकता है। यहां कुछ फायदे हैं जो अन्नपूर्णा मंत्र के जाप करने से हो सकते हैं:
1. आत्मशांति और मानसिक स्थिति का सुधार:अन्नपूर्णा मंत्र का जाप करने से आत्मशांति, मानसिक स्थिति, और ध्यान की स्थिति में सुधार हो सकता है।
2. आहार की कमी को दूर करना: यह मंत्र भोजन और आहार की महत्वपूर्णता को समझाने में सहारा प्रदान कर सकता है और आपको आहार की कमी से बचने में मदद कर सकता है।
3.धन और समृद्धि की प्राप्ति: अन्नपूर्णा मंत्र का जाप करने से धन और समृद्धि में सुधार हो सकता है, क्योंकि यह देवी श्री अन्नपूर्णेश्वरी को समर्पित है जो समृद्धि और समृद्धि की देवी मानी जाती है।
4.दानशीलता और करुणा की भावना: अन्नपूर्णा मंत्र का जाप करने से दानशीलता, करुणा और अन्यों के प्रति समर्पण की भावना में सुधार हो सकता है।
5.जीवन की समस्याओं का समाधान:यह मंत्र जीवन की छोटी-बड़ी समस्याओं का समाधान ढूंढने में मदद कर सकता है और आपको जीवन में सकारात्मक परिवर्तन का अनुभव करने में सहायक हो सकता है।
यह फायदे व्यक्ति के विशिष्ट स्थिति और निर्देशों के आधार पर भिन्न हो सकते हैं। फिर भी, इसे अच्छी तरह से समझने और इसे सही रूप से अपनाने के लिए अपने आत्मा की दिशा में गहराई से ध्यान करना चाहिए।