देवनारायण की कथा |Dev Narayan Ki Katha
देवनारायण की कथा- देवनारायण जी के पिता सवाई भोज बड़े प्रतापी थे। यह गोठा के जागीरदार थे। सवाई भोज ने उज्जेन के सामंत दूधा खटाणा की पुत्री सेढू खटानी और कोटपुतली के पदम पोसवाल की पुत्री पद्मा से विवाह किया था। गढ़ बुवाल (मारवाड़ के पास) के सामंत ईडदे सोलंकी की राजकुमारी जयमती सवाई भोज से शादी करना चाहती थीं।
जयमती के पिता उसका विवाह राण के राणा दुर्जनसाल से करना चाहते थे। राणा दुर्जनसाल जयमती से विवाह हेतु बारात लेकर गढ़ बुवाल के लिए निकले थे लेकिन सवाई भोज ने उन्हें मार्ग भर्मीत कर गोठा पहुंचा दिया। दुर्जनसाल को जब इसके बारे में पता चला तो उसने एक विशाल सेना के साथ गोठा पर हमला किया और सभी विद्रोहियों को मार डाला। राणा दुर्जनसाल को युद्ध के बाद भी जयमती नहीं मिली। युद्ध में सवाई भोज का समर्थन करते हुए उन्हें वीरगति भी प्राप्त हुई थी।
उस समय सवाई भोज की दूसरी पत्नी सेढू खटानी गर्भवती थीं। गुरु रूपनाथ ने सेढू खटानी को समझाया कि उनका गर्भ में जो बच्चा है वहीं बच्चा वंश का बदला लेगा और अन्याय और अत्याचार को मिटा देगा।
गुरु रूपनाथ की बात सुनकर सेढू खटानी आसींद भीलवाड़ा के मालाश्री जंगलों में चली गई जहां पर माघ शुक्ला सप्तमी को देवनारायण जी का जन्म हुआ। और उनका नाम उदय सिंह रखा गया।
राणा दुर्जन सिंह को जब व उदय सिंह के बारे में पता चला तो उसने उसे भी मारने के लिए एक सेना की टुकड़ी को मालाश्री भेजा। जब इसकी सूचना सेढू खटानी को मिली तो वह मालाश्री का त्याग करके अपने पीहर देवास चली गई।
इसके बाद उनका बचपन देवास में ही बीता वहां पर ही उन्होंने शिक्षा ग्रहण की और अस्त्र शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया। तथा आयुर्वेद का ज्ञान भी प्राप्त किया।