संतान सप्तमी व्रत कथा पूजन विधि 2023 | Santan Saptami Vrat Katha Pujan Vidhi 2023
संतान सप्तमी व्रत एक पारंपरिक हिन्दू व्रत है जो पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ किया जाता है। यह व्रत सप्तमी तिथि को किया जाता है, जो हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष में कई बार आती है। संतान सप्तमी का मुख्य उद्देश्य पुत्र प्राप्ति होता है, लेकिन कुछ लोग इसका पालन पुत्री प्राप्ति के लिए भी करते हैं।
संतान सप्तमी व्रत का मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती विशेष रूप से आशीर्वाद देते हैं, और इसके परिणामस्वरूप पुत्र प्राप्ति होती है। इस व्रत का महत्व विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में माना जाता है, और लोग इसे अपने परंपरागत धार्मिक अनुष्ठान के रूप में करते हैं।
संतान सप्तमी व्रत का अधिकांश परिपालन महिलाएं करती हैं, और इस व्रत के दौरान विशेष पूजा-अर्चना, व्रत कथा के सुनने, मन्त्र जाप, और पुआ (मिठाई) का भोग चढ़ाया जाता है। व्रत की तारीख और विधि भिन्न-भिन्न स्थानों और परंपराओं के अनुसार विभिन्न हो सकती है, इसलिए आपके स्थानीय पंडित या धार्मिक आध्यात्मिक आदर्श के अनुसार इसे करें।
संतान सप्तमी व्रत के दौरान, व्रत की पालना करने वाले व्यक्ति को ध्यान और आत्मा के शुद्धता का महत्व देना चाहिए, और यह भावना रखनी चाहिए कि वे भगवान के आशीर्वाद से पुत्र प्राप्ति करेंगे।
संतान सप्तमी शुभ मुहूर्त| Santan Saptami Shubh Mahurat
संतान सप्तमी 2023 के मुहूर्त निम्नलिखित हैं:
- भाद्रपद शुक्ल सप्तमी तिथि शुरू होती है: 21 सितंबर 2023, दोपहर 02:14
- भाद्रपद शुक्ल सप्तमी तिथि समाप्त होती है: 22 सितंबर 2023, दोपहर 01:35
मुहूर्त विवरण:
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:35 से सुबह 05:22 तक
- अभिजित मुहूर्त: सुबह 11:49 से दोपहर 12:38 तक
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:18 से शाम 06:42 तक
- अमृत काल: सुबह 06:47 से सुबह 08:23 तक
यह मुहूर्त संतान सप्तमी का आचरण करने के लिए उपयुक्त हो सकते हैं। यदि आपके किसी विशेष अच्छे कार्य के लिए इस मुहूर्त का उपयोग करने की योजना है, तो कृपया अपने स्थानीय पंडित या ज्योतिषशास्त्री से परामर्श करें, ताकि वे आपको विस्तृत और व्यक्तिगत सुझाव दे सकें।
संतान सप्तमी व्रत कथा | Santan Saptami Vrat Katha
लोमेश ऋषि द्वारा संतान सप्तमी की व्रत कथा
अयोध्या का राजा था नहुष, उसकी पत्नी का नाम चन्द्र मुखी था. चन्द्र मुखी की एक सहेली थी, जिसका नाम रूपमती थी, वो नगर के ब्राह्मण की पत्नी थी. दोनों ही सखियों में बहुत प्रेम था. एक बार वे दोनों सरयू नदी के तट पर स्नान करने गयी, वहाँ बहुत सी स्त्रियाँ संतान सप्तमी का व्रत कर रही थी. उसकी कथा सुनकर इन दोनों सखियों ने भी पुत्र प्रप्ति के लिए इस व्रत को करने का निश्चय किया, लेकिन घर आकर वे दोनों भूल गई. कुछ समय बाद दोनों की मृत्यु हो गई और दोनों ने पशु योनी में जन्म लिया.
कई जन्मो के बाद दोनों ने मनुष्य योनी में जन्म लिया, इस जन्म में चन्द्रवती का नाम ईश्वरी एवम रूपमती का नाम भूषणा था. इश्वरी राजा की पत्नी एवं भुषणा ब्राह्मण की पत्नी थी, इस जन्म में भी दोनों में बहुत प्रेम था. इस जन्म में भूषणा को पूर्व जन्म की कथा याद थी, इसलिए उसने संतान सप्तमी का व्रत किया, जिसके प्रताप से उसे आठ पुत्र प्राप्त हुए, लेकिन ईश्वरी ने इस व्रत का पालन नहीं किया, इसलिए उसकी कोई संतान नहीं थी. इस कारण उसे भूषणा ने इर्षा होने लगी थी. उसने कई प्रकार से भुषणा के पुत्रों को मारने की कोशिश की, लेकिन उसके भुषणा के व्रत के प्रभाव से उसके पुत्रो को कोई क्षति ना पहुँची. थक हार कर ईश्वरी ने अपनी इर्षा एवं अपने कृत्य के बारे में भुषणा से कहा और क्षमा भी माँगी. तब भुषणा ने उसे पूर्वजन्म की बात याद दिलाई और संतान सप्तमी के व्रत को करने की सलाह दी. ईश्वरी ने पुरे विधि विधान के साथ व्रत किया और उसे एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई.
इस प्रकार संतान सप्तमी के व्रत का महत्व जानकर सभी मनुष्य पुत्र प्राप्ति एवं उनकी सुरक्षा के उद्देश्य से इस व्रत का पालन करते हैं.
संतान सप्तमी पूजन विधि | Santan Saptami Pujan Vidhi
संतान सप्तमी पूजा को प्रारंभ करने के लिए आप निम्नलिखित पूजा विधि का पालन कर सकते हैं:
1. प्रारंभ मंत्रा: पूजा की शुरुआत मंत्रों के जाप के साथ करें, और भगवान शिव और पार्वती की प्रतिमा का स्नान कराएं।
2. चन्दन लेप: भगवान शिव और पार्वती की प्रतिमा को चन्दन का लेप लगाएं।
3. अक्षत और श्री फल (नारियल): अक्षत और श्री फल को पूजा के लिए अर्पण करें।
4. दीप प्रज्वलित करना: धूप, दीप, और नैवेद्य का भोग भगवान के सामने रखें और प्रज्वलित करें।
5. डोरा बाँधना: अब अपनी संतान की रक्षा का संकल्प लेकर भगवान शिव को डोरा बाँधें।
6. कलाई में डोरा बाँधना: डोरे को अपनी संतान की कलाई में बाँध दें।
7. भोग चढ़ाएं: खीर, पूरी, और अन्य प्रिय भोग भगवान के सामने चढ़ाएं। भोग में तुलसी का पत्ता रखें और उसे जल से तीन बार घुमाकर भगवान के सामने रखें।
8. आरती: परिवार के सभी अध्यात्मिक जनों के साथ मिलकर आरती करें।
9. मन की मुराद: भगवान के सामने मस्तक रखकर अपनी संतान के लिए या जो कोई भी विशेष मनोकामना है, वो मन की मुराद करें।
10. प्रसाद वितरण: इस भोग को प्रसाद स्वरूप सभी परिवार जनों और आस-पास के लोगों के साथ साझा करें।
संतान सप्तमी पूजा का महत्व है और इसका पालन भक्ति और श्रद्धा के साथ किया जाना चाहिए। इस पूजा के द्वारा विशेष रूप से पुत्र प्राप्ति की कामना की जाती है।
संतान सप्तमी व्रत में क्या खाया जाता है
संतान सप्तमी पूजा में माताएं पुआ का भोग लगाती हैं और उसे खाती हैं, यह एक पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे पारंपरिक रूप से किया जाता है। पुआ (पूआ) एक प्रकार की मिठाई होती है जो आमतौर पर गुड़, गेहूं का आटा, और घी के साथ बनाई जाती है। यह माताओं के द्वारा उनके पुत्र प्राप्ति के लिए बनाया जाता है और इसे भगवान की कृपा का प्रतीक माना जाता है।
संतान सप्तमी पूजा के दौरान, माताएं पुआ को भोग के रूप में चढ़ाती हैं और उसे भगवान के सामने रखती हैं। फिर वह पुआ को अपने पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ खाती हैं। इसके बाद, वे अन्य कोई भोजन नहीं करतीं हैं और पूजा के बाद ही अपने भोजन को शुरू करतीं हैं।
यह परंपरागत रूप से किया जाने वाला भोग माताओं के भक्ति और पुत्र प्राप्ति की श्रद्धा का प्रतीक होता है और इसे उनके पुत्र के भविष्य के लिए शुभ माना जाता है।