पशुपति व्रत कथा | Pashupatinath Vrat Katha 2023

 पशुपति व्रत कथा | Pashupatinath Vrat Katha 2023

कथा शुरू करने से पहले अपने साथ में कुछ अक्षत (चावल के दाने) ले लीजिये और जितने भी लोग साथ में इसे सुन रहे हैं उन्हें भी यह अक्षत दे दीजिये और कथा समाप्त होने के बाद इन अक्षतों को मंदिर में चढ़ा दें।

एक बार की बात है भगवान् शिव, नेपाल की सुन्दर तपोभूमि के प्रति आकर्षित होकर, एक बार कैलाश छोड़ कर यहीं आकर रम गये। इस क्षेत्र में वह 3 सींग वाले मृग (चिंकारा) बन कर, विचरण करने लगे। अतः इस क्षेत्र को पशुपति क्षेत्र, या मृगस्थली भी कहते हैं। शिव को इस प्रकार अनुपस्थित देख कर ब्रह्मा, विष्णु को चिंता हुई और दोनों देवता भगवान शिव की खोज में निकले।

इस सुंदर क्षेत्र में उन्होंने एक देदीप्यमान, मोहक 3 सींग वाले मृग को विचरण करते देखा। उन्हें मृग रूप में शिव होने की आशंका होने लगी। ब्रह्मा जी ने योग विद्या से तुरंत पहचान लिया कि यह मृग नहीं, बल्कि भगवान आशुतोष ही हैं। ब्रह्मा जी ने तत्काल ही उछल कर उन्होंने मृग का सींग पकड़ने का प्रयास किया। इससे मृग के सींग के 3 टुकड़े हो गये।

उसी सींग का एक टुकड़ा इस पवित्र क्षेत्र में गिरा और यहां पर महारुद्र उत्पन्न हुए, जो श्री पशुपति नाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए। शिव जी की इच्छानुसार भगवान् विष्णु ने नागमती के ऊंचे टीले पर,भगवान शिव को मुक्ति दिला कर, लिंग के रूप में स्थापना की, जो पशुपति के रूप में विख्यात हुआ।

 


एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने