भादवा चौथ की कहानी | Bhadva Chauth Ki Katha

 भादवा चौथ की कहानी  | Bhadva Chauth Ki Katha

 

भादवा की चौथ माता की कहानी – एक बुढ़िया माई के ग्वालिया – बछालिया नाम का बेटा था। बुढ़िया माई अपने बेटे के लिए बारह महीने की चारों चौथ करती थी। बेटा लकड़ी लेकर आता था और दोनों मां बेटा उनको बेचकर गुजारा करते थे। बुढ़िया माई रोजाना लकड़ी में से दो लकड़ी रख लेती और चौथ के दिन बेटे से छुप कर बेचकर सामान लाती थी और पांच पुआ बनाती थी।

एक पुआ गणेश जी महाराज को, एक चौथ माता को चढाती, एक ब्राह्मण को और एक अपने बेटे को खिलाती थी और एक पुआ खुद खाती थी। एक चौथ के दिन बेटा अपनी पड़ोसन के घर गया वह पुआं बना रही थी जब उसने पूछा कि आज क्या है जो पूऐ बना रखे हैं तब वह बोली मैंने तो आज ही बनाए हैं पर तेरी मां तो चारों चौथ को पूऐ बनाती है। उसने जाकर मां से पूछा मां तू रोज पुऐ बनाती है मैं इतनी मेहनत से कमाता हूं।

बुढ़िया माई बोली मैं तो चौथ माता का व्रत करती हूं। वह बोला कि तू मुझे रख ले या तो तू चौथ माता को ही रख ले। बुढ़िया माई बोली मैं तो तेरे लिए ही चौथ का व्रत करती हूं इसलिए मैं तुझे छोड़ सकती हूं पर चौथ माता को नहीं जब बेटा घर से जाने लगा तो बुढ़िया माई बोली तू जा रहा है तो मेरे हाथ मे से यह आखा लेते जा जहां संकट आए वहां ही पूर देना। बेटे ने सोचा बात झूठी है पर ले चलने में क्या बुराई है।

वह चलने लगा और वह थोड़ी दूर पहुंचा ही था कि उसने देखा कि खून की नदी बह रही थी कहीं से भी रास्ता नहीं मिला तो आखा पूर कर बोला की चौथ माता अगर तू सच्ची है तो रास्ता हो जाए। ऐसा कहते ही झट से रास्ता मिल गया। आगे गया तो घनघोर अंधेरा, उजाड़ फैला हुआ था उसने मन में सोचा कि मुझे शेर, भघेरे खा जाएंगे इसलिए वह आखा पूर कर बोला चौथ माता मुझे रास्ता मिल जाए। और तब जल्दी से रास्ता मिल गया।

वह आगे चला गया जाते-जाते एक राजा की नगरी में पहुंचा। वहां का राजा रोजाना एक आदमी की बलि देता था। वह एक बुढ़िया माई के पास गया वह बुढ़िया माई रोती जा रही थी और पूऐ बना रही थी। लड़के ने बुढ़िया माई से पूछा कि बुढ़िया माई क्यों रो रही हो तो बुढ़िया माई ने जवाब दिया कि मेरे एक ही बेटा है जिसकी कल राजा बलि देने वाला है मैं उसी के लिए पुए बना रही हूं।

वह बोला बुढ़िया माई अपने बेटे की जगह मुझे पुए खिला दे मैं उसकी जगह बलि चढ़ने चला जाऊंगा। बुढ़िया माई ने कहा कि मैं दूसरे के पुत्र को कैसे भेज सकती हूं। लेकिन वह नहीं माना तो बुढ़िया माई ने उसको पुए खिला दिए। अगले दिन जब राजा का संदेश आया तो बुढ़िया माई ने सोचा कि मैं कैसे दूसरे के बेटे को बलि चढ़ने के लिए भेज सकती हूं मैं ऐसा नहीं कर सकती। लेकिन बाहर की आवाज सुनकर वह जाग गया और राजा के आदमियों के साथ चला गया।

वहां मटके पकाने का हाव( जिसमें कुम्हार मटको को पकाता है) बना हुआ था जो एक मनुष्य का भोग लेने के बाद ही उसमें हाव पकते थे उन सब ने मिलकर उसको हाव में चुन दिया। वह आखा पूर कर हाव मैं बैठ गया। एक दिन में ही हाव पक गया और मिट्टी के घड़े सोने चांदी के बन गए। वहां एक जमादारनी झाड़ू लगा रही थी तब झाड़ू से एक कंकड़ उछलकर उन बर्तनों से जा टकराया तब जमादारनी ने राजा को जाकर बताया कि आपका हाव तो पक गया है तब राजा ने सोचा कि हाव तो आठ दिन में पकता है आज एक दिन में ही कैसे पक गया।

जब जाकर देखा तो वहां पर तो मिट्टी के मटके की जगह हीरे मोती और सोने चांदी के कलश हो गए। अंदर से आवाज आई कि धीरे से उतारो अंदर आदमी है आवाज को सुनकर राजा के आदमी डर गए कि अंदर कौन सा भूत प्रेत आ गया। फिर वह बोला कि डरो मत मैं तो सिर्फ एक आदमी हूं जिसको तुमने अंदर चुना था। देखा तो अंदर हरे हरे ज्वारे उग रहे थे।

राजा ने पूछा कि तू अंदर जीवित कैसे बच गया तब उसने बताया कि मेरी मां चौथ का व्रत करती हैं। जब मैं घर से निकला था तो मेरी मां ने मुझे आखे दिए थे मैं उन्हें को पूर कर बैठ गया और चौथ माता के कारण बच गया। तब राजा ने कहा कि मैं तेरे को एक घोड़े पर बैठा कर सांकल बांध देता हूं यदि वह सांकल खुलकर मेरे बंध जाएगी तो मैं चौथ माता को सच्ची मान लूंगा।

तब वह आखे पूर कर बैठ गया और चौथ माता से कहने लगा। हे चौथ माता अब तुम ही मेरी लाज बचाना तब सांकल खुलकर राजा के बंध गई। राजा ने अपनी बेटी की शादी उस लड़के से कर दी और बहुत सा धन दौलत देकर विदा किया। पड़ोसन बोली की माई तेरे बेटे बहू आए हैं जब छत पर चढ़कर देखा तो सच में बैठे बहू आ रहे थे।

हे चौथ माता। जैसे आपने बुढ़िया और उसके बेटे पर कृपा बनाई वैसे सभी पर कृपा बनाना। भादवा की चौथ माता की कहानी कहने वाले को, कहानी सुनने वाले को, हुंकारा भरने वाले को और पूरे परिवार पर अपनी कृपा बनाना।

यह थी भादवा की चौथ माता की कहानी हम आशा करते हैं कि आपको भादुड़ी चौथ माता की कहानी पसंद आई होगी धन्यवाद।

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