Sanskrit Shlok on Life | ज़िन्दगी से जुड़े संस्कृत श्लोक
जीवन से जुड़े कुछ संस्कृत श्लोक: 1. श्लोक: सर्वेषां स्वस्थिरेवायं सर्वदा सुखिनो भवेत्। सर्वेषां तु दुःखमेकं भूतात्मा विद्ध्यवद्ययम्।। अर्थ (Meaning in Hindi): सभी के लिए यह शरीर सदा स्वस्थ रहे और सभी सुखी रहें। परंतु सभी के लिए एक ही दुःख है, यह बात तुम जानो अविनाशी आत्मा को। Transliteration: sarveṣāṁ svasthir-evāyaṁ sarvadā sukhino bhavet sarveṣāṁ tu duḥkham ekaṁ bhūtātmā viddhy-avad-yayam 2. श्लोक: आपदां निहतं देवं जनानामित्रसंगिनम्। लोकानां हितकारीणं तमादित्यं प्रणमाम्यहम्।। अर्थ: मैं सूर्य को प्रणाम करता हूँ, जो जनों को आपत्तियों से बचाते हैं, मित्रों के संग रहते हैं, और सभी लोगों के हित के लिए कार्य करते हैं। Transliteration: āpadāṁ nihataṁ devaṁ janānāmitra-saṅginam lokānāṁ hitakāriṇaṁ tamādityaṁ praṇamāmyaham
3. श्लोक:
यस्य नास्ति स्वयं भान्ति खलु तस्य महान्ति भूतानि।
यस्य जीवंति योगेन तन्त्रमित्राणि यो भागवान्।।
अर्थ:
जिसकी स्वयं की रौशनी नहीं है, उसके भूत बड़े होते हैं।
जिसके जीवन में योग है, वह दिन-दिनांतर दोस्त बनते जाते हैं, क्योंकि वह भगवान का पुत्र है।
Transliteration:
yasya nāsti svayaṁ bhānti khalu tasya mahānti bhūtāni
yasya jīvanti yogena tantramitrāṇi yo bhāgavān
4. श्लोक:
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्मः सनातनः।।
अर्थ:
सत्य को बोलें, प्रिय को बोलें, परंतु अप्रिय सत्य को न बोलें।
प्रिय और सत्य के विपरीत कुछ न बोलें, यह सनातन धर्म है।
Transliteration:
satyaṁ brūyāt priyaṁ brūyāt na brūyāt satyam-apriyam
priyaṁ ca nānṛtaṁ brūyāt eṣha dharmaḥ sanātanaḥ
5. श्लोक:
विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।
धनाध्यक्षः सर्वजनप्रियः।
अर्थ:
ज्ञान ही सबसे बड़ी धन है।
धन का उपभोग करने वाला सबका प्रिय होता है।
Transliteration:
vidyādhanaṁ sarvadhana-pradhānam
dhanādhyakṣaḥ sarvajana-priyaḥ
6. श्लोक:
शत्रुभाजो न मे भवति शत्रुभृत्यः सुजीविनः।
भवन्तु ब्राह्मणा योगिनः सर्वजगद्गुरोः परः।।
अर्थ:
मेरे लिए शत्रुभाज, शत्रुभृत्य, और सुजीवी नहीं होता।
ब्राह्मण और योगी हों, वह जगत के सभी गुरुओं के परम होता है।
Transliteration:
śhatrubhājo na me bhavati śhatrubhṛityaḥ sujīvinaḥ
bhavantu brāhmaṇā yoginaḥ sarvajagad-guroḥ paraḥ
7. श्लोक:
योगः कर्मसु कौशलं।
संन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः।।
अर्थ:
कर्म में योग और कौशल है, यह सच है।
परंतु महाबाहो (अर्जुन), योग से रहित संन्यास दुःख को प्राप्त करने के लिए है।
Transliteration:
yogaḥ karmasu kaushalam
sannyāsastu mahā-bāho duḥkhamāptumayogataḥ
8. श्लोक:
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः।।
अर्थ:
असत् से भाव नहीं होता, और भाव से असत् नहीं होता।
इन दोनों का तत्त्वदर्शी व्यक्ति के लिए अन्तर दृष्टि से देखा गया है।
Transliteration:
nāsato vidyate bhāvo nābhāvo vidyate sataḥ
ubhayorapi dṛiṣṭo'ntastv-anayos-tattvadarśhibhiḥ
9. श्लोक:
क्षुद्रेणैकेन चक्रेण वल्लभो योगिनां परः।
क्षिप्रं विनश्यतीहाय वह स्वामी जगत्पते।।
अर्थ:
एक छोटे से चक्र से भी योगियों का परम वल्लभ होता है।
इसलिए, ओ जगतपति, वह शीघ्र ही यहां नष्ट हो जाएगा।
Transliteration:
kṣhudreṇaikena chakreṇa vallabho yogināṁ paraḥ
kṣhipraṁ vinaśyatīhāya vaha svāmī jagatpate
10. श्लोक:
आत्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्।
जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।।
अर्थ:
अपने आत्मा को शत्रु बनाने के लिए व्यापार करना चाहिए, आत्मा को शत्रु की तरह।
जो अपने आत्मा को जीत लेता है, वह प्रशान्त होता है और परमात्मा में समाहित होता है।
Transliteration:
ātmanastu śhatrutve varte tātmaiva śhatrutvat
jitātmanaḥ praśhāntasya paramātmā samāhitaḥ