कर्म पर गीता के श्लोक | Gita Shloka on Karma

कर्म पर गीता के श्लोक  | Gita Shloka on Karma



भगवद गीता में कर्म पर कई श्लोक हैं। यहां कुछ उनमें से कुछ हैं जिनका अर्थ हिंदी में और उनकी रोमन लिपि में दिया गया है:


1. श्लोक: 

   कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

   मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।


   अर्थ:

   तुम्हारा अधिकार कर्म में ही है, परन्तु कभी भी फलों में नहीं।

   तुम कर्मफल के लिए कर्म करने में हे अर्जुन, तुम्हें कभी भी आसक्ति नहीं होनी चाहिए।


   Transliteration:

   karmaṇy-evādhikāras te mā phaleṣhu kadāchana

   mā karma-phala-hetur bhūr mā te saṅgo 'stvakarmaṇi


2. श्लोक:

   योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।

   सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।2.48।।


   अर्थ:

   हे धनञ्जय, योग में बैठ कर कर्म कर, संग त्याग कर।

   सिद्धि और असिद्धि में समान बनकर तथा समता रखकर वह योग कहलाता है।


   Transliteration:

   yogasthaḥ kuru karmāṇi saṅgaṁ tyaktvā dhanañjaya

   siddhy-asiddhyoḥ samo bhūtvā samatvaṁ yoga uchyate


३. श्लोक:

   कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः।

   स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्।।4.18।।


   अर्थ:

   जो कर्मों में कर्म नहीं देखता और जो कर्म में ही कर्म देखता है, वही मनुष्यों में बुद्धिमान है और वही सब कर्मों को करने योग्य है।


   Transliteration:

   karmaṇyakarma yaḥ paśhyed akarmaṇi ca karma yaḥ

   sa buddhimān manuṣhyeṣhu sa yuktaḥ kṛitsna-karma-kṛit

4. श्लोक:

   यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

   अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।


   अर्थ:

   हे भारत, जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं स्वयं को सृष्टि करता हूँ।


   Transliteration:

   yadā yadā hi dharmasya glānir bhavati bhārata

   abhyutthānam adharmasya tadātmānaṁ sṛijāmy aham

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