काली माता मंत्र | Kali Mata Mantra
काली माता फोटो
मां काली के मंत्र | Kali Mata Mantra
भद्रकाली मंत्र | Bhadra Kali Mantra
ह्रौं काली महाकाली किलिकिले फट् स्वाहा॥
काली मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके क्लीं श्रीं ह्रीं ऐं॥
काली बीज मंत्र | Kali Beej Mantra
ॐ क्रीं काली
तीन अक्षरी काली मंत्र
'ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं'
पांच अक्षरी काली मंत्र
ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं हूँ फट्
सप्ताक्षरी काली मंत्र
ॐ हूँ ह्रीं हूँ फट् स्वाहा
मां काली का मंत्र
ॐ श्री कालिकायै नमः
काली मां का मंत्र
”ॐ हरिं श्रीं कलिं अद्य कालिका परम् एष्वरी स्वा:”
दक्षिणकाली मंत्र
ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं॥
क्रीं ह्रुं ह्रीं दक्षिणेकालिके क्रीं ह्रुं ह्रीं स्वाहा॥
ॐ ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके स्वाहा॥
पूजा हेतु काली मंत्र
”कृन्ग कृन्ग कृन्ग हिन्ग कृन्ग दक्षिणे कलिके कृन्ग कृन्ग कृन्ग हरिनग हरिनग हुन्ग हुन्ग स्वा:”
काली गायत्री मंत्र | Kali Gayatri Mantra
“ॐ महा काल्यै छ विद्यामहे स्स्मसन वासिन्यै छ धीमहि तन्नो काली प्रचोदयात”
महाकाली बीज मंत्र | MahaKali Beej Mantra
ॐ क्रीं कालिकायै नमः
काली माता की कहानी | Kali Mata Story
जगत जननी मां अंबा ने राक्षसों का संहार करने के लिए मां काली का विकराल रूप धारण किया था। उनके इस रूप के पीछे शास्त्रों में बहुत सारी कथाएं प्रचलित हैं और पुराणों में भी इनका व्याख्यान मिलता है। आइए जानें मां के भयानक और ममतामयी स्वरुप की कथा-
दारुक नामक राक्षस ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कड़ी तपस्या की। उससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया की उसकी मृत्यु केवल महिला के हाथों से होगी। अन्य कोई भी उसे मार नहीं पाएगा। वो राक्षस ब्रह्मा जी के वरदान का गलत फायदा उठाने लगा और उसने सारे ब्राह्मणों, संतों और देवताओं का जीना मुश्किल कर दिया। उसने अपनी शक्ति से सारे अनुष्ठान बंद करवा दिए और स्वर्ग पर अपना राज जमा कर बैठ गया। सारे देवता उस से लड़ने गए पर निराश होकर वापिस लौट आए। तब ब्रह्मा जी ने बताया ये राक्षस सिर्फ किसी स्त्री के हाथों ही मारा जाएगा।
सारे देवता मिलकर भगवान शिव के पास मदद की गुहार लगाने पहुंचे। दारुक राक्षस के आंतक के बारे में बताया। तब इस समस्या के समाधान के लिए भोलेनाथ ने जगत जननी मां पार्वती की तरफ देखा और कहा,'' हे कल्याणी ! जगत के हित के लिए और उस दारुक दैत्य के लिए मैं तुमसे प्रार्थना करता हूं।''
इतना सुनकर माता पार्वती मुस्कुराई और अपना एक अंश भगवान भोलेनाथ में प्रवेश करवा दिया। मां भगवती का वो अंश भगवान शिव के गले से अवतरित हुआ। भोलेनाथ ने तभी अपना तीसरा नेत्र खोला और उनके नेत्र के द्वार से मां ने भयंकर काली का विकराल रूप धारण कर लिया। उनके इस रूप को देखकर देवता व राक्षस वहां से भागने लगे। उनका रूप इतना भयंकर था कि कोई भी उनके सामने टिक न पाया।
मां काली के सिर्फ हुंकार से ही सारे दैत्यों का नाश हो गया। सारे असुर जलकर भस्म हो गए लेकिन तब भी उनका गुस्सा शांत न हुआ और उनके क्रोध की अग्नि से सारे लोग जलने लगे। देवताओं ने पुन: भोलेनाथ से मदद मांगी। तब महादेव ने मां काली के गुस्से को शांत करने के लिए एक बालक का रूप धारण किया। उनके इस रूप को बटुक भैरव भी कहा जाता है और उस बालक के रूप में भोलेनाथ जोर-जोर से रोने लगे। उनके रोने की आवाज मां काली के कानों में पड़ी। माता ने उस प्यारे से बालक को अपने गले से लगा लिया और तभी माता वापिस से अपने सौम्य रूप में आ गई।
मां काली को खुश करने के लिए क्या करना चाहिए?
मां काली को खुश करने के लिए आप निम्नलिखित कदमों को अपना सकते हैं:
1. पूजा और अर्चना: मां काली की पूजा और अर्चना करना एक प्रमुख तरीका है उन्हें खुश करने का। उनकी मूर्ति को सुंदरता से सजाकर और धूप, दीप, फूल, फल, और नैवेद्य से पूजा करें।
2. माला और मंत्र जप: मां काली के नाम का जप करना और उनकी माला का उपयोग करना उन्हें प्रसन्न करने का एक प्रभावी तरीका है। "ॐ क्रीं कालिकाए नमः" या "ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं कालिकायै नमः" इस प्रकार के मंत्र का जप करें।
3. त्याग और सेवा: काली माता की सेवा करना और उनके भक्तों की सेवा में शामिल होना उन्हें प्रसन्न करने में मदद कर सकता है। गरीबों और आवश्यकताओं में पड़े लोगों की मदद करना उनकी भक्ति में सुधार कर सकता है।
4. व्रत और उपासना: काली माता के व्रत रखना और नियमित उपासना करना उनकी कृपा को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
5. श्रद्धा और भक्ति: मां काली की श्रद्धा और भक्ति के साथ प्रार्थना करना उन्हें खुश करने के लिए महत्वपूर्ण है। अपने मन और हृदय से उनकी उपासना करें और उनसे आत्मबोधन के लिए मार्गदर्शन करने की प्रार्थना करें।
काली चालीसा | Kali Chalisa
॥दोहा॥
जयकाली कलिमलहरण,
महिमा अगम अपार ।
महिष मर्दिनी कालिका,
देहु अभय अपार ॥
॥ चौपाई ॥
अरि मद मान मिटावन हारी ।
मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥
अष्टभुजी सुखदायक माता ।
दुष्टदलन जग में विख्याता ॥
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै ।
कर में शीश शत्रु का साजै ॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला ।
हाथ तीसरे सोहत भाला ॥4॥
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे ।
छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी ।
शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता ।
जग मनहरण रूप ये माता ॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी ।
निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥8॥
महशक्ति अति प्रबल पुनीता ।
तू ही काली तू ही सीता ॥
पतित तारिणी हे जग पालक ।
कल्याणी पापी कुल घालक ॥
शेष सुरेश न पावत पारा ।
गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥
तुम समान दाता नहिं दूजा ।
विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥12॥
रूप भयंकर जब तुम धारा ।
दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे ।
भक्तजनों के संकट टारे ॥
कलि के कष्ट कलेशन हरनी ।
भव भय मोचन मंगल करनी ॥
महिमा अगम वेद यश गावैं ।
नारद शारद पार न पावैं ॥16॥
भू पर भार बढ्यौ जब भारी ।
तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥
आदि अनादि अभय वरदाता ।
विश्वविदित भव संकट त्राता ॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा ।
उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा ।
काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥20॥
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे ।
अरि हित रूप भयानक धारे ॥
सेवक लांगुर रहत अगारी ।
चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥
त्रेता में रघुवर हित आई ।
दशकंधर की सैन नसाई ॥
खेला रण का खेल निराला ।
भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥24॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे ।
कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो ।
स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥
ये बालक लखि शंकर आए ।
राह रोक चरनन में धाए ॥
तब मुख जीभ निकर जो आई ।
यही रूप प्रचलित है माई ॥28॥
बाढ्यो महिषासुर मद भारी ।
पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की ।
पीर मिटावन हित जन-जन की ॥15॥
तब प्रगटी निज सैन समेता ।
नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं ।
तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥32॥
मान मथनहारी खल दल के ।
सदा सहायक भक्त विकल के ॥
दीन विहीन करैं नित सेवा ।
पावैं मनवांछित फल मेवा ॥17॥
संकट में जो सुमिरन करहीं ।
उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं ।
भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥36॥
काली चालीसा जो पढ़हीं ।
स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा ।
केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥
करहु मातु भक्तन रखवाली ।
जयति जयति काली कंकाली ॥
सेवक दीन अनाथ अनारी ।
भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥40॥
॥दोहा॥
प्रेम सहित जो करे,
काली चालीसा पाठ ।
तिनकी पूरन कामना,
होय सकल जग ठाठ ॥
काली माता की आरती | Kali Mata Aarti
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुन गाए भारती, हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |
तेरे भक्त जनो पार माता भये पड़ी है भारी |
दानव दल पार तोतो माड़ा करके सिंह सांवरी |
सोउ सौ सिंघों से बालशाली, है अष्ट भुजाओ वली,
दुशटन को तू ही ललकारती |
हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |
माँ बेटी का है इस जग जग बाड़ा हाय निर्मल नाता |
पूत कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता |
सब पे करुणा दर्शन वालि, अमृत बरसाने वाली,
दुखीं के दुक्खदे निवर्तती |
हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |
नहि मँगते धन धन दौलत ना चण्डी न सोना |
हम तो मांगे तेरे तेरे मन में एक छोटा सा कोना |
सब की बिगड़ी बान वाली, लाज बचाने वाली,
सतियो के सत को संवरती |
हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |
चरन शरण में खडे तुमहारी ले पूजा की थाली |
वरद हस् स सर प रख दो म सकत हरन वली |
माँ भार दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओ वली,
भक्तो के करेज तू ही सरती |
हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली |
तेरे ही गुन गाए भारती, हे मैया, हम सब उतारे तेरी आरती |
काली माता किसकी बेटी है?
श्रीमार्कण्डेय पुराण एवं श्रीदुर्गा सप्तशती के अनुसार काली मां की उत्पत्ति जगत जननी मां अम्बा के ललाट से हुई थी।
काली माँ का दिन
काली माता का दिन मंगलवार को माना जाता है। मंगलवार को इस देवी की पूजा विशेष रूप से की जाती है और इस दिन उनका व्रत रखा जाता है। काली माता विशेष रूप से शक्ति की देवी के रूप में पूजी जाती है और उन्हें बल, शक्ति, और साहस की देवी माना जाता है।
मान्यता के अनुसार, काली माता का दिव्य रूप मंगलवार को विशेषता से पूजी जाता है, और उनका सानिध्य इस दिन को और भी प्रासंगिक बनाता है। शक्ति पूजन, मंत्र जप, ध्यान, और भगवान के प्रति श्रद्धाभाव के साथ माता की पूजा किया जाता है।
इसके अलावा, कुछ लोग निर्धारित दिनों पर विशेष रूप से निर्धारित मास में चैत्र नवरात्रि और शरद नवरात्रि के दौरान भी काली माता की पूजा करते हैं। इन दिनों भक्त नौ दिनों तक व्रत रखकर माता की पूजा करते हैं और उन्हें विभिन्न भोग और उपहारों से प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं।
काली माता की शादी किससे हुई थी
काली माता की शादी भगवान शिव से हुई थी। कहानी के अनुसार, काली माता का प्रकट होना राक्षस राजा रक्तबीज के खिलाफ लड़ाई के समय हुआ था। राक्षस राजा रक्तबीज एक असुर था जो अपने हर एक कण से नए राक्षस उत्पन्न कर सकता था, जिससे देवताओं को उससे मुक्ति प्राप्त करने में कठिनाई हो रही थी।
मां काली ने राक्षस राजा रक्तबीज का वध करने के बाद उसका रक्त पिया और उसकी ताकत को शांत करने के लिए उन्होंने भयंकर रूप में दिखाई दी। इस रूप में मां काली ने धरती पर तांडव नृत्य किया और देवी दुर्गा के रूप में विराजमान हुईं।
इसके बाद, भगवान शिव ने मां काली को रोकते हुए उनसे विवाह की प्रार्थना की, और मां काली ने शिव भगवान से विवाह की सहमति दी। इस प्रकार, भगवान शिव और मां काली की शादी हुई और वे जीवनभर साथ रहते हैं।
काली माता का भोग
काली माता को विशेष प्रकार के भोग और प्रसाद की प्राथना की जाती है, जिससे उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। कुछ प्रमुख काली माता के भोगों में शामिल हो सकते हैं:
1. सिन्दूर (वेरमा): काली माता को सिन्दूर अर्पित करना सान्त्वना और आशीर्वाद दिलाने में माना जाता है।
2. चावल: सादा चावल भी एक प्रकार का भोग हो सकता है जो उन्हें अर्पित किया जाता है।
3. काली देवी का चालीसा और आरती: इसके अलावा, काली माता के चालीसा और आरती भी पढ़ी जाती है जो भक्तों के द्वारा सुन्दरता और भक्ति का सार दर्शाती है।
4. मिठाई और फल: भगवान की प्रासाद में मिठाई और फल भी शामिल किया जा सकता है।
5. लाल फूल: काली माता को लाल फूल, विशेषकर हिबिस्कस फूल (जपा के फूल) से प्रसन्न करने का कारण माना जाता है।
यह भोग और प्रसाद की प्रक्रिया साधक या भक्त की विशेष प्राथनाओं और आराधना के आधार पर बदल सकती हैं।
मां काली किसकी कुलदेवी है?
पंवार वंश की कुलदेवी माना जाता है
मां काली को नींबू क्यों चढ़ाया जाता है?
.मान्यता है कि मां काली को प्रसन्न करने के लिए पहले बली और नरमुंडों की माला चढ़ाई जाती थी. यह आज के समय में असंभव है. ऐसे में मां के इस रौद्र रूप को प्रसन्न करने के लिए और उनका आशीर्वाद पाने के लिए इन मालाओं की जगह पर नींबू की माला माता काली की मूर्ति पर चढ़ाते हैं