तुलसी मंत्र | Tulsi Mantra

तुलसी मंत्र | Tulsi Puja Mantra


तुलसी मंत्र इन संस्कृत | Tulsi Mantra in Sanskrit

तुलसी स्तोत्र अर्थ सहित

1.तुलसी मंत्र जल देते समय | Tulsi Mantra Jal Dete Samay

तुलसी मंत्र का उपयोग तुलसी के पूजन या जल दान के समय किया जा सकता है। तुलसी को हिन्दू धर्म में एक पवित्र पौधा माना जाता है, और इसे पूजन और जल दान का अभ्यास किया जाता है। तुलसी मंत्रों का उच्चारण करते समय योगी भावना को बनाए रखना चाहिए। यहां एक प्रमुख तुलसी मंत्र दिया गया है:

  • 'महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते.'
  •     ॐ सुभद्राय नमः
  •     ॐ सुप्रभाय नमः
  •     मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
  •     नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।


इस मंत्र का उच्चारण करते समय, व्यक्ति को तुलसी के प्रति श्रद्धा भावना के साथ यह मंत्र बोलना चाहिए। यह मंत्र तुलसी को विनम्रता और पूज्यता के साथ स्वीकार करने का अर्थ है।

जब आप तुलसी को जल देने का समय आता है, तो आप तुलसी के पौधे के नीचे बैठकर या स्थानीय तुलसी मंदिर में जा कर इस मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं और फिर पौधे को सावधानीपूर्वक जल दे सकते हैं। जल दान करते समय यह महत्वपूर्ण है कि आप तुलसी को स्वच्छ और पवित्र जल से पूरी तरह से नम्रता और भक्ति के साथ स्नान कराएं।

2
. तुलसी स्तुति मंत्र  | Tulsi Stuti Mantra


देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः,

नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।


( Meaning In Hindi देवी, आप अतीत में ऋषियों द्वारा बनाए और पूजे गए थे, हे तुलसी, प्रिय हरि, मेरे पापों को दूर करो।


3. तुलसी पूजन मंत्र   | Tulsi Pujan Mantra


तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।

धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।

तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

(तुलसी भाग्य की देवी, भाग्य की महान देवी, ज्ञान की शानदार देवी हैं।
वह धर्मी है और उसका चेहरा धर्मी है और देवी-देवताओं के मन को प्रिय है
वह परम भक्ति को प्राप्त करता है और अंत में विष्णु के धाम को प्राप्त करता है।
तुलसी भूरमहालक्ष्मी पद्मिनी श्री हरप्रिया।

4.तुलसी ध्यान मंत्र  | Tulsi Dhyan Mantra


तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।

धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।

तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।

 

5. तुलसी गायत्री मंत्र | Tulsi Gayatri Mantra

  ऊँ त्रिपुराय विद्महे तुलसी पत्राय धीमहि
तन्नो तुलसी प्रचोदयात्


जो भी तुलसी माता के इस गायत्री मंत्र का जाप प्रतिदिन 108 बार करता है उसका मन शांत रहता है और घर में भी सुख समृद्धि का वास होता है। व्यक्ति के मन में भी वेबसाइटों के प्रति सेवा भाव व्याप्त है। जिन लोगों के घर में गृह क्लेश रहता है उन्हें यह तुलसी गायत्री मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए। अगर कभी समय की कमी हो तो इस मंत्र का 27 बार जाप किया जा सकता है, लेकिन कोशिश यही रहेगी कि 108 बार ही मंत्र का जाप किया जाए।

तुलसी गायत्री मंत्र का जाप तुलसी की माला से किया जाना चाहिए। अगर तुलसी की माला नहीं है तो कोई भी माला से कर सकता है।

6.तुलसी तोड़ने का मंत्र | Tulsi Todne Ka Mantra


तुलसी के पत्ते तोड़ने से पहले बोले ये तीन मंत्र

    ॐ सुभद्राय नम:
    ॐ सुप्रभाय नम:
    मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
    नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते।।



7.तुलसी प्रणाम मंत्र ISKCON  | Tulsi Pranam Mantra Iskon

श्री तुलसी प्रणाम

सुबह में, मंगला-आरती के बाद (और अधिमानतः शाम को, संध्या-आरती से पहले भी), सभी इकट्ठे भक्तों को तुलसी पूजा में शामिल होना चाहिए और श्रीमती तुलसी-देवी की परिक्रमा करनी चाहिए। सबसे पहले हम तुलसी-देवी को तुलसी-प्रणाम-मंत्र के साथ प्रणाम करते हैं, जिसका तीन बार जाप किया जाता है:

(ओम) वृंदायै तुलसी-देव्यै प्रियायै केशवस्य च
विष्णु-भक्ति-प्रदे देवी सत्यवत्यै नमो नमः


मैं वृंदा, श्रीमती तुलसी-देवी, जो भगवान केशव को बहुत प्रिय हैं, को बार-बार नमस्कार करता हूँ। हे देवी, आप कृष्ण को भक्ति प्रदान करती हैं और आपके पास सर्वोच्च सत्य है।

तुलसी बीज मंत्र

8. श्री  तुलसीआरती  | Shri Tulsi Aarti

 श्री  तुलसी-आरती

श्री तुलसी प्रणाम
वृन्दायै तुलसी देव्यायै प्रियायै केशवस्यच।
कृष्ण भक्ती प्रदे देवी सत्य वत्यै नमो नमः।।

(1)

नमो नम: तुलसी कृष्ण प्रेयसी ।
राधा कृष्ण सेवा पाबो एई अभिलाषी ।।

(2)

जे तोमार शरण लय, तार वांछा पूर्ण हय।
कृपा करि कर तारे वृंदावनवासी।।

(3)

मोर एई अभिलाष, विलास कुन्जे दिओ वास।
नयने हेरिबो सदा, युगल-रूप राशि।।

(4)

एइ निवेदन धर, सखीर अनुगत कर।
सेवा-अधिकार दिये, कर निज दासी।।

(5)

दीन कृष्णदासे कय, एइ येन मोर हय।
श्री राधा गोविंदा प्रेमे सदा येन भासि।।

श्री तुलसी प्रदक्षिणा मंत्र

यानि कानि च पापानी ब्रह्म हत्यादिकानी च।
तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणः पदे पदे ।।

9.तुलसी नामाष्टक स्तोत्र | Tulsi Namashtakam Stotra

 

वृंदा,वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |
 
पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ||
 
 
एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |
 
य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत ||

श्री तुलसी नामाष्टक लाभ

"श्री तुलसी नामाष्टक" मंत्र का जाप कई लोग अपने धार्मिक और साधना प्रयासों के दौरान करते हैं, और इसे निरंतर जपने का मान्यता प्राप्त है। इस मंत्र के जप का कारण हो सकता है कि इसे विशेष रूप से तुलसी पूजा और व्रतों में शामिल किया जाता है और यह माना जाता है कि इसके जाप से कई लाभ हो सकते हैं:

1. धन की वृद्धि: श्री तुलसी नामाष्टक का जाप करने से धन में वृद्धि होने की माना जाती है।

2. सुख समृद्धि: इस मंत्र के जाप से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है, जो व्यक्ति को जीवन में संतुष्टि और समृद्धि प्रदान कर सकती है।

3. आरोग्य: श्री तुलसी नामाष्टक का जाप करने से रोगों से मुक्ति मिलने की आशा की जाती है, और व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का लाभ हो सकता है।

4. मोक्ष की प्राप्ति: मंत्र के जाप से मोक्ष की प्राप्ति होने की कल्पना की जाती है, जो आत्मा को मुक्ति की ऊँचाई पर पहुंचा सकती है।

5. श्रद्धा भावना: तुलसी माता के सामने बैठकर इस मंत्र का जाप करने से श्रद्धा और भक्ति में वृद्धि हो सकती है, जो धार्मिक साधना में सहायक हो सकता है।

यह सभी लाभ धार्मिक आदान-प्रदान और तुलसी पूजा के संबंध में हो सकते हैं, और इन्हें नियमित और निष्ठापूर्वक अपनाने से व्यक्ति को आध्यात्मिक और भौतिक दृष्टि से लाभ हो सकता है।



तुलसी माता की कहानी | Tulsi Mata Ki Kahani


  1.  धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि तुलसी जी भगवान विष्णु जी की अर्धांगनी हैं, जो माता लक्ष्मी की स्वरूप हैं। आइए जानते हैं कि क्यों तुलसी पूजा क्यों की जाती है और पूजा कैसे करनी चाहिए-

    तुलसी जी की पूजा क्यों की जाती है

    पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, चिरकाल में वृंदा नामक एक युवती रहती थी, जो कि भगवान विष्णु जी की परम भक्त थीं, लेकिन वह राक्षस कुल की थीं। कालांतर में वृंदा की शादी जलंधर नामक राक्षस से हुई। इसके बाद वह कुशल गृहिणी बनकर गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगीं। इसके बावजूद वह भगवान विष्णु जी की नित्य पूजा किया करती थीं।

    इस युद्ध में देवता जलंधर को हरा न सके

    इसी दौरान एक बार देवताओं और दानवों के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में जलंधर भी दानवों की तरफ से युद्ध करने गए। उस समय वृंदा ने कहा कि-हे स्वामी आप युद्ध में जा रहे हैं और मैं पूजा करने जा रही हूं। आप युद्ध और मैं तप करूंगी। इस तप में विष्णु जी से आपकी सलामती की प्रार्थना करूंगी। इसके बाद वृंदा विष्णु जी की तपस्या में लग गई। इस युद्ध में देवता जलंधर को हरा न पाए। यह देख देवतागण विष्णु जी के पास जाकर अपनी याचना सुनाकर बोले-अब आप ही द।

    विष्णु जी शालिग्राम पत्थर बन गए

    इसके बाद विष्णु जी जलंधर रूप धारण कर वृंदा के पास पहुंचे। अपने पति को देख वृंदा झट से विष्णु जी के मायारूपी जलंधर के चरण स्पर्श की। उसी समय देवताओं ने जलंधर को युद्ध में परास्त कर उसका वध कर दिया। इसके बाद जलंधर का सर वृंदा के पास आकर गिरा। यह देख वृंदा समझ गई कि उसके साथ छल किया गया। उसी समय वृंदा ने छली विष्णु जी को पत्थर होने का शाप दिया। इस शाप के फलस्वरूप विष्णु जी शालिग्राम पत्थर बन गए।

    वृंदा के शाप से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। तब माता लक्ष्मी की याचना पर वृंदा ने शाप वापस लिया और विष्णु जी को शाप मुक्त कर खुद पति जलंधर के साथ सती हो गईं। वृंदा के सती राख से एक पौधा का सृजन हुआ, जिसे तुलसी कहा गया। कालांतर में विष्णु जी ने वृंदा को वरदान दिया कि मेरे साथ आपकी पूजा-उपासना जरूर की जाएगी।




  2. तुलसी माता का विवाह  | Tulsi Mata Vivah

    तुलसी विवाह का महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत उच्च माना जाता है, और इसे विशेष रूप से हिन्दू समाज में महत्वपूर्ण रूप से माना जाता है। यह एक परंपरागत पूजा और उत्सव है जो तुलसी माता के शालिग्राम अवतार से होता है। इसे भगवान विष्णु और तुलसी माता के विवाह का रूप माना जाता है।

    तुलसी विवाह के अवसर पर लोग तुलसी पौधे का विशेष रूप से सजाकर उसे दुल्हन की भावना के साथ पूजते हैं। इस अवसर पर भगवान विष्णु को तुलसी माता के साथ विवाह के रूप में माना जाता है, और इसे धार्मिक तथा सामाजिक सांस्कृतिक महत्व के साथ मनाया जाता है।

    तुलसी विवाह का आयोजन तुलसी पूजन के पश्चात् कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। इस दिन महिलाएं तुलसी माता की पूजा करती हैं, और उन्हें सजा कर देती हैं जैसे कि एक दुल्हन को सजाया जाता है। इस दिन को बहुत ही शुभ माना जाता है और इस दिन को विशेष रूप से विवाह के मुहूर्त के रूप में चयन किया जाता है।

    इस पूरे विवाह की प्रक्रिया के बाद, लोग तुलसी माता का विशेष रूप से ध्यान रखते हैं, और इसे समर्थन करने का प्रयास करते हैं। इसका मानव जीवन में एक विशेष स्थान होता है और लोग इसे बहुत श्रद्धा भावना से पूजते हैं

    जरूर, यहां तुलसी विवाह पूजा विधि :-

    •  निर्धारित तिथि और समय:
    •    - तुलसी विवाह की पूजा का सही समय और तिथि का चयन करें। यह अक्टूबर और नवम्बर के बीच किया जाता है, जब कार्तिक मास की एकादशी होती है।
    •  नहाना और नए कपड़े पहनना:
    •    - सुबह उठकर नहाएं और नए कपड़े पहनें।
    •  पूजा स्थल की सजावट:
    •    - पूजा करने वाले स्थल को अच्छी तरह से साफ़ करें और सजाएं।
    • तुलसी माता की सजावट:
    •    - तुलसी माता को दुल्हन की तरह सजाएं, सोलह श्रृंगार के साथ।
    •    - उसे गन्ने और चुनरी से सजाएं।
    • पूजा स्थल की तैयारी:
    •    - चौकी बिछाएं और उस पर तुलसी का पौधा और शालिग्राम स्थापित करें।
    •  तुलसी माता और शालिग्राम की पूजा:
    •    - तुलसी माता और शालिग्राम को साथ में पूजें।
    •    - गंगाजल से अभिषेक करें और घी का दीपक जलाएं।
    •  चन्दन और रोली का टीका:
    •    - भगवान शालिग्राम और माता तुलसी को रोली और चंदन से टीका लगाएं।
    • परिक्रमा:
    •    - भगवान शालिग्राम को हाथ में लेकर तुलसी के चारों ओर परिक्रमा करें।
    • आरती:
    •    - तुलसी को भगवान शालिग्राम की बाईं ओर रखें और उन दोनों की आरती उतारें।
    • विवाह संपन्न:
    •   इसके बाद, तुलसी और शालिग्राम का विवाह संपन्न हो जाता है।
    • इस पूजा विधि के अभ्यास से व्यक्ति तुलसी विवाह के महत्वपूर्ण और सुखद अनुभव को प्राप्त कर सकता है।।

  3. तुलसी माता की आरती  | Tulsi Mata Aarti

    तुलसी माता की आरती

    जय जय तुलसी माता, सब जग की सुखदाता...
    ।। जय ।।

    सब योगों के ऊपर, सब लोगों के ऊपर...
    रुज  से  रक्षा करके भव त्राता।
    ।। जय।।

    बटु पुत्री हे श्यामा सुर बल्ली हे ग्राम्या...
    विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे सो नर तर जाता।
    ।। जय ।।

    हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित...
    पतित जनों की तारिणी तुम हो विख्याता।
    ।। जय ।।

    लेकर जन्म विजन में आई दिव्य भवन में...
    मानवलोक तुम्हीं से सुख संपत्ति पाता।
    ।। जय ।।

    हरि को तुम अति प्यारी श्याम वरुण कुमारी...
    प्रेम अजब है उनका तुमसे कैसा नाता।
    ।। जय ।।

    बोलो तुलसी माता की जय….!!!


  4. तुलसी माता का गीत  | Tulsi Mata ka Geet


    तुलसी विवाह के गीत


    मेरी प्यारी तुलसा जी बनेंगी दुल्हनियां...
    सजके आयेंगे दूल्हे राजा।

    देखो देवता बजायेंगे बाजा...
    सोलह सिंगार मेरी तुलसा करेंगी।

    हल्दी चढ़ेगी मांग भरेगी...
    देखो होठों पे झूलेगी नथनियां।

    देखो देवता...
    देवियां भी आई और देवता भी आए।
    साधु भी आए और संत भी आए...
    और आई है संग में बरातिया।

    देखो देवता...
    गोरे-गोरे हाथों में मेहंदी लगेगी...
    चूड़ी खनकेगी ,वरमाला सजेगी।
    प्रभु के गले में डालेंगी वरमाला।

    देखो देवता...
    लाल-लाल चुनरी में तुलसी सजेगी...
    आगे-आगे प्रभु जी पीछे तुलसा चलेगी।
    देखो पैरो में बजेगी पायलियां।

    देखो देवता...
    सज धज के मेरी तुलसा खड़ी है...
    डोली मंगवा दो बड़ी शुभ घड़ी है।
    देखो आंखों से बहेगी जलधारा।

    देखो देवता...

     
  5. तुलसी माता के मंत्र
  6. तुलसी माता के गीत देहाती
  7. तुलसी माता की फोटो


  8. तुलसी माता के भजन लिरिक्स  | Tulsi Mata Bhajan Lyrics


    तुलसी माता का भजन


    नमो नमो तुलसा महारानी,
    नमो नमो हर जी  पटरानी।

    कौन से महीने बीज को बोया,
    तो कोनसे महीने में हुई हरियाली ।

    नमो नमो….

    सावन में  मैया बीज को बोया ,
    तो भादो मास हुई हरियाली ।

    नमो नमो….

    कौन से महीने में हुई तेरी पूजा तो,
    कौन से महीने में हुई पटरानी ।

    नमो नमो….

    कार्तिक में हुई तेरी पूजा,
    तो मंगसर मास हुई पटरानी ।

    नमो नमो….

    बाई तुलसी थे जपतप कीन्हा,
    सालगराम  हुई  पटरानी ।

    नमो  नमो….

    बारह बरस जीजी कार्तिक नहाई,
    सालगराम हुई पटरानी ।

    नमो नमो….

    छप्पन भोग धरे हरि आगे,
    तो बिन तुलसा हरि एक न मानी ।

    नमो नमो….

    सांवरी सखी मईया तेरो जस गावे ,
    तो चरणा में वासो छीजो महारानी।

    नमो नमो तुलसा महारानी
    नमो नमो हर जी पटरानी।

    तुलसी माता  | Tulsi Mata


    1. तुलसी माता का मंत्र:
       - "ॐ तुलस्यै नमः" यह मंत्र तुलसी माता को समर्पित है और उसका सम्मान करने के लिए उच्चारित किया जा सकता है।

    2. तुलसी की पूजा के दौरान पढ़ने वाले मंत्र:

     
      - तुलसी पूजा के दौरान "ॐ तुलस्यै नमः" मंत्र का जाप किया जा सकता है, जो तुलसी की पूजा में अत्यंत प्रमुख है।

    3. तुलसी को प्रसन्न करने के लिए:
     
      - तुलसी को प्रसन्न करने के लिए व्यक्ति को नियमित रूप से पूजा, जल, और प्रेम से इसका सेवन करना चाहिए।

    4. तुलसी की परिक्रमा के दौरान पढ़ने वाले मंत्र:

       - तुलसी की परिक्रमा के दौरान "ॐ तुलस्यै नमः" या "श्री विष्णु प्रियायै नमः" जैसे मंत्रों का जाप किया जा सकता है।

    5. तुलसी की रोज पूजा:
       - रोज तुलसी की पूजा को सूर्योदय के समय करना उत्तम माना जाता है।
       - सफाई रखने के लिए तुलसी के पौधे के चारों ओर की मिट्टी को धूप और गंध से सुधारा जा सकता है।


    6. तुलसी में कौन सा दीपक जलाना चाहिए:

      
    - तुलसी में कपूरी दीपक जलाना चाहिए। यह तुलसी माता को प्रिय होता है

    7. मृत तुलसी के पौधे का क्या करें:
       - अगर तुलसी का पौधा मृत हो जाता है, तो उसे धनिया या गंधक के साथ गोबर की खाद डालकर बाहर निकाला जा सकता है

    8. तुलसी को किस दिन नहीं छूना चाहिए:
       - तुलसी को शनिवार को छूना नहीं चाहिए, क्योंकि इस दिन इसे विशेष रूप से नहीं छुआ जाता है।

    9. तुलसी में दीपक कब नहीं चलना चाहिए:
       - तुलसी में दीपक कभी नहीं चलना चाहिए, जब अष्टमी तिथि हो और ना ही शनिवार को तुलसी में दीपक जलाना चाहिए

    FAQ

    1. तुलसी माता किसका अवतार है:
       - तुलसी माता को मैथिली देवी (महालक्ष्मी) के अवतार के रूप में माना जाता है।

    2. तुलसी देवी किसकी पत्नी थी:

       - तुलसी देवी को विष्णु भगवान की पत्नी माना जाता है।

    3. तुलसी माता क्या है:

       - तुलसी माता हिन्दू धर्म में एक पवित्र और महत्वपूर्ण देवी है, जिन्हें विष्णु भगवान की पत्नी के रूप में पूजा जाता है।

    4. तुलसी देवी का पति कौन था:
       - तुलसी देवी का पति विष्णु भगवान था।

    5. नारायण ने तुलसी से शादी क्यों की:

       - तुलसी देवी की पूर्व जन्म में वह मैथिली देवी (सीता) थी, और वह नारायण (राम) की पत्नी बनना चाहती थी। लेकिन, उनकी तपस्या और परिश्रम के बाद भगवान ने उन्हें तुलसी पौधा बना दिया। उनकी पूजा का निष्ठा और प्रेम को देखकर भगवान ने उनसे विवाह की इच्छा जताई और उन्हें अपनी पत्नी बनाया।

    6. विष्णु ने तुलसी से शादी क्यों की:

       - भगवान विष्णु ने तुलसी के प्रेम और भक्ति को देखकर उनके साथ विवाह किया ताकि उनकी पूजा और भक्ति सबके लिए प्रेरणा स्रोत बन सके।

    7. तुलसी माता पूर्व जन्म में कौन थी:
       - तुलसी देवी का पूर्व जन्म में नाम 'वृन्दा' था, जो वृन्दावन की रानी राधा के रूप में जानी जाती है।

    8. क्या तुलसी लक्ष्मी का अवतार थी:
       - हाँ, तुलसी को महालक्ष्मी के अवतार के रूप में माना जाता है।

    9. जालंधर पूर्व जन्म में कौन था:
       - जालंधर पूर्व जन्म में शुक्राचार्य के शिष्य थे और उन्हें शुक्र नाम से जाना जाता था।.
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