छात्रों के लिए श्लोक | 5 Easy Sanskrit Slokas for Kids
1. विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् । पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥
पढ़ने-लिखने से शऊर आता है. शऊर से काबिलियत आती है. काबिलियत से पैसे आने शुरू होते हैं. पैसों से धर्म और फिर सुख मिलता है.
2. विद्वानेवोपदेष्टव्यो नाविद्वांस्तु कदाचन । वानरानुपदिश्याथ स्थानभ्रष्टा ययुः खगाः ॥
(विद्वानेवोपदेष्टव्यो - विद्वान को ही उपदेश करना चाहिए, कदाचन - किसी भी समय) सलाह भी समझदार को देनी चाहिए न कि किसी मूर्ख को, ध्यान रहे कि बंदरों को सलाह देने के कारण पंक्षियों ने भी अपना घोसला गंवा दिया था.
3. उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः । न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥
(सुप्तस्य - सोते हुए) कार्य करने से ही सफलता मिलती है, न कि मंसूबे गांठने से. सोते हुए शेर के मुंह में भी हिरन अपने से नहीं आकर घुस जाता कि ले भाई खा ले मेरे को, तुझको बड़ी भूख लगी होगी.
4. अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैवकुटम्बकम्॥
(लघुचेतसाम् - छोटे चिंतन वाले; वसुधैवकुटम्बकम् -सम्पूर्ण पृथ्वी ही परिवार है.) ये अपना है ये दूसरे का है. ऐसा टुच्ची सोच रखने वाले कहते हैं. उदार लोगों के लिए पोरी दुनिया फैमिली जैसी है.
5. अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् । अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतो सुखम् ॥
आलस करने वाले को नॉलेज कैसे होगी? जिसके पास नॉलेज नहीं है उसके पास पैसा भी ,जिसके पास पैसा नहीं होगा उसके दोस्त भी नहीं बनेंगे और बिना फ्रेंड्स के पटी कैसे करोगे? मतलब बिना फ्रेंड्स के सुख कहां से आएगा ब्रो?
6. सुलभा: पुरुषा: राजन् सततं प्रियवादिन: । अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभ:।।
(प्रियवादिन: - प्रिय बोलने वाले ,पथ्यस्य - हितकर बात ) मीठा-मीठा और अच्छा लगने वाला बोलने वाले बहुतायत में मिलते हैं. लेकिन अच्छा न लगने वाला और हित में बोलने वाले और सुनने वाले लोग बड़ी मुश्किल से मिलते हैं.
7. यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम् । लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ॥
(यस्य - जिसका,लोचनाभ्यां - आंखों से) जिसके पास खुद की बुद्धि नहीं किताबें भी उसके किस काम की? जिसकी आंखें ही नहीं हैं वो आईने का क्या करेगा?
8. आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्शो महारिपुः । नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कुर्वाणो नावसीदति ॥
(रिपु: - दुश्मन) आलस ही आदमी की देह का सबसे बड़ा दुश्मन होता है और परिश्रम सबसे बड़ा दोस्त. परिश्रम करने वाले का कभी नाश या नुकसान नहीं होता.
9. श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ग्रन्थकोटिभिः । परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥
(यदुक्तं - जो कहा गया, परपीडनम् - दूसरे को दुःख देना) करोड़ों ग्रंथों में जो बात कही गई है वो आधी लाइन में कहता हूं, दूसरे का भला करना ही सबसे बड़ा पुण्य है और दूसरे को दुःख देना सबसे बड़ा पाप.
10. मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं मुखे । हठी चैव विषादी च परोक्तं नैव मन्यते ॥
मूर्खों की पांच निशानियां होती हैं, अहंकारी होते हैं, उनके मुंह में हमेशा बुरे शब्द होते हैं,जिद्दी होते हैं, हमेशा बुरी सी शक्ल बनाए रहते हैं और दूसरे की बात कभी नहीं मानते.
छात्रों के लिए कुछ प्रेरणादायक श्लोक हैं जो उन्हें पढ़ाई और जीवन में सफलता की दिशा में मार्गदर्शन कर सकते हैं:
1. गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।
- (Gurur-Brahmaa Gurur-Vissnnur-Gurur-Devo Maheshvarah
Gurureva Param Brahma Tasmai Shrii-Gurave Namah)
इस श्लोक का अर्थ है: गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु महेश्वर है। गुरु ही परम ब्रह्मा है, मैं उस श्रीगुरु को नमस्कार करता हूँ।
2. असतोमा सद्गमया, तमसोमा ज्योतिर्गमया,
मृत्योर्मामृतं गमया।
- (Asato Ma Sadgamaya, Tamaso Ma Jyotirgamaya,
Mrityorma Amritam Gamaya)
इस श्लोक से सीख मिलती है कि हमें असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमृतता की ओर बढ़ना चाहिए।
3. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।
- (Karmanye Vadhikaraste Ma Phaleshu Kadachana
Ma Karma Phala Hetur Bhur Ma Te Sango 'stvakarmani)
इस श्लोक से सीख मिलती है कि हमें कर्म करने में अधिकार है, परन्तु फल की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए। और हमें कर्मों में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए।
4. योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।
- (Yogasthah Kuru Karmani Sangam Tyaktva Dhananjaya
Siddhyasiddhyoh Samo Bhutva Samatvam Yoga Uchyate)
इस श्लोक से सीख मिलती है कि हमें कर्मों में योगदान करना चाहिए, परन्तु आसक्ति को त्यागकर सफलता-असफलता की भावना से मुक्त होना चाहिए।
6. योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।
- (Yogasthah Kuru Karmani Sangam Tyaktva Dhananjaya
Siddhyasiddhyoh Samo Bhutva Samatvam Yoga Uchyate)
इस श्लोक में कहा गया है कि कर्मों में योगदान करते रहो, फल की आसक्ति त्यागो, सिद्धि-असिद्धि में सम बनो और समता की भावना रखो।
7. उत्तिष्ठते जाग्रते प्राप्य वरान्निबोधत।
- (Uttishthate Jāgrate Prāpya Varānnibodhata)
यह श्लोक कहता है, "उठो, जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहो।"
8. सहना ववतु सहनौ भुनक्तु सहवीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।
- (Sahanāvavatu Sahanau Bhunaktu Sahavīryam Karavāvahai
Tejasvināvadhītamastu Mā Vidviṣāvahai)
इस श्लोक में समृद्धि, सहयोग, और तेज की माँग की जाती है, और विरोध नहीं किया जाना चाहिए।
9. योगः कर्मसु कौशलम्।
- (Yogah Karmasu Kaushalam)
इस श्लोक से यह सिखने को मिलता है कि कर्म में कुशलता योग का हिस्सा है और इससे सफलता हो सकती है।
10. अर्जुन उवाच | कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोणं च मधुसूदन।
इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिसूदन।
- (Arjuna Uvāca | Kathaṃ Bhīṣmamaham Saṅkhye Droṇaṁ Cha Madhusūdana
Iṣhubhiḥ Pratiyotsyāmi Pūjārhāvarisūdana)
इस भगवद गीता के श्लोक में अर्जुन की विमुक्ति की प्रार्थना है, जो उन्हें युद्धभूमि में अवश्य प्राप्त होनी चाहिए।
ये श्लोक छात्रों को स्थिरता, समर्पण, और सफलता की दिशा में मार्गदर्शन करने में मदद कर सकते हैं।