शरीर के सात चक्र कैसे जगाए | Chakras in Human Body
चक्र क्या है समझाइए?
चक्र (Chakra):
चक्र संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ "चक्कर" या "वृत्ति" होता है। यह भौतिक या आध्यात्मिक शक्तियों की बात करने वाले भारतीय धर्म, योग, और तंत्र शास्त्र में एक महत्वपूर्ण आदान-प्रदान है।
मुख्य बिंदुएं:
1. भौतिक स्तर पर: इस तात्कालिक अर्थ में, चक्र शरीर के विभिन्न स्थानों पर स्थित होने वाले एक प्रकार के ऊर्जा केंद्रों को संदर्भित कर सकता है, जिन्हें अक्सर बात चीत चक्रों के रूप में कहा जाता है। इनमें मुलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपूरक, अनाहत, विशुद्धि, आज्ञा, और सहस्रार शामिल हैं।
2. आध्यात्मिक स्तर पर: चक्र का अध्यात्मिक स्तर पर मतलब है कि ये ऊर्जा केंद्र अदृश्य आत्मा और ब्रह्म के साथ जुड़े हुए हैं। इस धारणा के अनुसार, चक्र योग और तंत्र शास्त्र में उपयोग होते हैं जो व्यक्ति के आत्मिक विकास और सामरिक संतुलन को बढ़ावा देने का कारण बनते हैं।
मुख्य चरित्रिक विशेषताएं:
1. स्थान: प्रत्येक चक्र शरीर के विभिन्न स्थानों पर स्थित होता है।
2. रंग: प्रत्येक चक्र को एक विशिष्ट रंग से जोड़ा जाता है, जिससे वह चक्र की ऊर्जा और धारणा को प्रतिष्ठित करता है।
3. तत्व: प्रत्येक चक्र को एक विशिष्ट तत्व से जोड़ा जाता है, जो उसकी धारणा को संवादित करता है।
4. ध्यान और मंत्र: प्रत्येक चक्र के लिए व
िशेष मंत्र और ध्यान विधि होती है जो उसकी ऊर्जा को बढ़ावा देती है।
5. देवता और देवीयाँ: प्रत्येक चक्र के साथ किसी न किसी देवता और देवी संबंधित होते हैं, जो उसकी ऊर्जा को नियंत्रित करते हैं।
चक्रों का अभ्यास करने के द्वारा, व्यक्ति अपनी ऊर्जा को संतुलित कर सकता है और आत्मिक विकास में सहायक हो सकता है। यह भी उसकी मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए मदद कर सकता है।
7 चक्र बीज मंत्र | 7 Chakra Beej Mantra
सात चक्रों के लिए बीज मंत्र योग और तंत्र शास्त्र में उपयोग होते हैं जो उस चक्र की ऊर्जा को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए बोले जाते हैं। यहां सात चक्रों के बीज मंत्र हैं:
1. मूलाधार चक्र | Root Chakra | Muladhara Chakra
- बीज मंत्र: लं
2. स्वाधिष्ठान चक्र | Sacral Chakra):
- बीज मंत्र: वं
3. मणिपूरक चक्र |Solar Plexus Chakra):
- बीज मंत्र: रं
4. अनाहत चक्र |Heart Chakra):
- बीज मंत्र: यं
5. विशुद्धि चक्र |Throat Chakra):
- बीज मंत्र: हं
6. आज्ञा चक्र |Third Eye Chakra):
- बीज मंत्र: ओं
7. सहस्रार चक्र |Crown Chakra):
- बीज मंत्र: मं
चक्रों के बीज मंत्रों का उच्चारण करने से पहले, ध्यान और ध्यान के साथ उनका अभ्यास करना सुझावित है। यह आपको चक्रों की ऊर्जा के साथ संवाद में लाने में मदद कर सकता है।
सात चक्र के रंग | 7 Chakra Colour
सात चक्रों को विभिन्न रंगों से जोड़ा जाता है, जो उनकी ऊर्जा और गतिविधियों को प्रतिनिधित करते हैं। निम्नलिखित है सात चक्रों के रंग:
1. मूलाधार चक्र (Root Chakra):
- रंग: लाल या लोहित (Red)
2. स्वाधिष्ठान चक्र (Sacral Chakra):
- रंग: नारंगी या केसरिया (Orange)
3. मणिपूरक चक्र (Solar Plexus Chakra):
- रंग: पीला (Yellow)
4. अनाहत चक्र (Heart Chakra):
- रंग: हरा (Green)
5. विशुद्धि चक्र (Throat Chakra):
- रंग: आसमानी नीला (Sky Blue)
6. आज्ञा चक्र (Third Eye Chakra):
- रंग: अंबर (Indigo)
7. सहस्रार चक्र (Crown Chakra):
- रंग: बैंगनी या यहाँति (Violet or White)
यह रंग चक्रों की ऊर्जा को संतुलित करने में मदद करते हैं और व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं। चक्रों के रंग का उपयोग चिकित्सा, योग, और और्वेदिक उपचार में भी होता है।
7 chakras |7 chakras in our body
योग और तंत्रशास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार, मानव शरीर में सात मुख्य चक्र होते हैं, जिन्हें "चक्र" कहा जाता है। इन चक्रों में प्राणशक्ति बहती है और इनका संतुलन रखने से शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार होता है। यहां सात मुख्य चक्रों का विवरण है:
1. मूलाधार चक्र (Root Chakra): इस चक्र का स्थान पृथ्वी तत्व के साथ जड़ चीजों से संबंधित है। इसका स्थान शरीर के नीचे मूत्राशय के नीचे है और इसे रक्तिना, मूल, या कुंडलिनी चक्र भी कहा जाता है।
2. स्वाधिष्ठान चक्र (Sacral Chakra): इस चक्र का संबंध जल तत्व के साथ है और इसका स्थान गुदा के नीचे है। इसे स्वाधिष्ठान चक्र, बीज चक्र, या योनिचक्र भी कहा जाता है।
3. मणिपूरक चक्र (Solar Plexus Chakra): इस चक्र का स्थान नाभि के नीचे है और इसका संबंध आग्नेय तत्व से है। इसे मणिपूरक चक्र, मणिपूर चक्र, या नाभिचक्र भी कहा जाता है।
4. अनाहत चक्र (Heart Chakra): इस चक्र का स्थान हृदय के क्षेत्र में है और इसका संबंध वायु तत्व से है। इसे अनाहत चक्र या हृदय चक्र भी कहा जाता है।
5. विशुद्धि चक्र (Throat Chakra): इस चक्र का स्थान कंठ क्षेत्र में है और इसका संबंध आकाश तत्व से है। इसे विशुद्धि चक्र या कंठ चक्र भी कहा जाता है।
6. आज्ञा चक्र (Third Eye Chakra): इस चक्र का स्थान भृगुचक्र के बीच में है और इसका संबंध आकाश तत्व से है। इसे आज्ञा चक्र, तीसरी आँख चक्र, या गुरु चक्र भी कहा जाता है।
7. सहस्रार चक्र (Crown Chakra): इस चक्र का स्थान मस्तिष्क के शीर्षक में है और इसका संबंध आकाश तत्व से है। इसे सहस्रार चक्र, शीर्ष चक्र, या ब्रह्म रंड्ड्र भी कहा जाता है।
ये सात चक्र मुख्य होते हैं, और हर एक चक्र का अपना विशिष्ट कार्य होता है जो शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद करता है। योग और ध्यान के माध्यम से इन चक्रों को संतुलित करने का प्रयास किया जा सकता है।
मूलाधार चक्र | Muladhar | Root Chakra
मूलाधार चक्र, जिसे "रूट चक्र" भी कहा जाता है, मनोविज्ञान और योग शास्त्र में एक महत्वपूर्ण चक्र है जो मानव शरीर में स्थित है। यह चक्र सात मुख्य चक्रों में से एक है, जो शक्ति और प्राण को नियंत्रित करता है। यह चक्र कुलाधार चक्र भी कहलाता है। यह सर्वाधिक निचला चक्र है और स्पाइनल कॉर्ड के नीचे मूलविद्या का स्थान है। इसे संस्कृत में "मूलाधार" शब्द से जोड़ा गया है, जिसका अर्थ होता है "मूल" या "आधार"।
मूलाधार चक्र की विशेषताएँ:
1. स्थान: मूलाधार चक्र का स्थान शरीर के नीचे, मूत्राशय के ऊपर और रेक्टम के नीचे होता है।
2. रंग: इस चक्र का रंग लाल होता है, जो ऊर्जा और शक्ति को प्रतिष्ठित करता है।
3. ध्वनि: मूलाधार चक्र का आधारभूत ध्वनि लंग है।
4. तत्व: इसे पृथ्वी तत्व से जोड़ा जाता है, जिससे इस चक्र को भूमि से जोड़ा जाता है।
5. पेतीका (पीठिका): मूलाधार चक्र का एक उपसर्ग, जिसे "पेतीका" कहा जाता है, होता है जिससे इस चक्र की शक्ति को नियंत्रित किया जा सकता है।
मूलाधार चक्र का महत्व:
1. आत्मा का समर्थन: मूलाधार चक्र मौलिक ऊर्जा का स्रोत है और इसका समर्थन करने से व्यक्ति अपनी आत्मा की ऊर्जा को संरचित कर सकता है।
2. स्थिरता और सुरक्षा: इस चक्र की जड़ें भूमि से जुड़ी होती हैं, जिससे व्यक्ति में स्थिरता और सुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है।
3. भूमिका का मानव स्वास्थ्य में: आयुर्वेद में मूलाधार चक्र को मानव स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है और यह शरीर के तंतुरुओं को स्थापित करने में मदद करता है।
4. कुण्डलिनी शक्ति: मूलाधार चक्र को जगाने का प्रयास करते समय, कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने का कारण बनता है, जो आत्मिक ऊर्जा की उच्च स्तरों को प्राप्त करने में मदद करता है।
5. आत्म-पहचान: मूलाधार चक्र का संतुलन बनाए रखने से व्यक्ति अपनी आत्म-पहचान में सुधार कर सकता है और अपने जीवन की दिशा म
स्वाधिष्ठान चक्र |Sacral Chakra:
1. स्थान (Location): स्वाधिष्ठान चक्र का स्थान गुदा के नीचे और शरीर के लिंग और योनि के बीच में होता है।
2. रंग (Color): इस चक्र का रंग नारंगी (Orange) होता है, जो ऊर्जा, उत्साह, और जीवन की रजो गुण को प्रतिष्ठित करता है।
3. ध्वनि (Sound/Vibration): स्वाधिष्ठान चक्र का मूल मंत्र "वं" है जो इसकी ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करता है।
4. तत्व (Element): इस चक्र का संबंध जल तत्व से है, जो जीवन शक्ति और सृष्टि का प्रतीक है।
5. ग्रंथि (Granthis): स्वाधिष्ठान चक्र से जुड़ी ग्रंथियाँ "मूल" और "नभि" में होती हैं, जो स्वतंत्रता और स्वाधीनता के अवसाद को प्रतिष्ठित कर सकती हैं।
6. जड़ तत्व (Element): स्वाधिष्ठान चक्र का जड़ तत्व पृथ्वी है, जो स्थिरता और सांगीतिकता को प्रतिष्ठित करता है।
7. कार्य (Function): यह चक्र व्यक्ति के भावनात्मक संबंध, भावनाएं, और उत्साह के साथ जुड़ा होता है। यह सृष्टि, संबंध, और सृष्टि का उद्दीपन करता है।
8. शारीरिक स्थिति (Physical Aspect): स्वाधिष्ठान चक्र का सीधा प्रभाव नाभि, पेट, रेखा, और पैरों पर होता है। यह चक्र जनन और अवसाद, विवाद, और आत्मसमर्थन के साथ जुड़ा होता है।
9. बैलेंस और असंतुलन (Balance and Imbalance): स्वाधिष्ठान चक्र का संतुलन रखने से व्यक्ति अच्छे संबंध बना सकता है, जो उसे जीवन में सुख और समृद्धि का अनुभव करने में मदद करता है। असंतुलन की स्थिति में व्यक्ति भूतकाल के दुख, संबंधों में कठिनाइयाँ, और आत्मसमर्थन की कमी का अनुभव कर सकता है।
स्वाधिष्ठान चक्र का संतुलन बनाए रखने के लिए योग, प्राणायाम, ध्यान, और समर्पित अभ्यास की आवश्यकता होती है।
मणिपूरक चक्र |Solar Plexus Chakra
1. स्थान (Location): मणिपूरक चक्र का स्थान नाभि (Navel) या नाभि के ठीक ऊपर होता है।
2. रंग (Color): इस चक्र का रंग पीला होता है, जो ऊर्जा और प्रगति का प्रतीक है।
3. ध्वनि (Sound/Vibration): इस चक्र का ध्वनि रंग है और इसे "रंग" चक्र भी कहते हैं।
4. तत्व (Element): मणिपूरक चक्र का संबंध आग्नेय तत्व से है, जो ऊर्जा और उत्साह का प्रतीक है।
5. ग्रंथि (Granthis): इस चक्र से "रूड" और "नभि" ग्रंथियाँ जुड़ी होती हैं, जो व्यक्ति की स्वतंत्रता और नियंत्रण की भावना को प्रभावित कर सकती हैं।
6. जड़ तत्व (Element): इस चक्र का जड़ तत्व पृथ्वी है, जिससे इसे शक्ति, स्थिरता, और उत्साह का संकेत मिलता है।
7. मैन्त्र (Mantra): मणिपूरक चक्र के लिए मैन्त्र "रं" है, जो इसे शक्तिशाली बनाने में मदद करता है।
8. कार्य (Function): यह चक्र व्यक्ति के आत्म-समर्थन, आत्म-संबंध, साहस, और स्वतंत्रता के साथ जुड़ा होता है। यह चक्र आत्मा की ऊर्जा को शक्तिशाली बनाने का कारण बनता है और उसे बाहरी दुनिया के साथ जोड़ने में मदद करता है।
9. शारीरिक स्थिति (Physical Aspect): मणिपूरक चक्र का सीधा असर नाभि, पेट, और रीडियों पर होता है। यह चक्र भोजन को प्रबंधन करने, पाचन में मदद करने, और संतुलित ऊर्जा संवेदनशीलता को बढ़ावा देने में मदद करता है।
10. बैलेंस और असंतुलन (Balance and Imbalance): इस चक्र का संतुलन रखने से व्यक्ति में स्वतंत्रता, सहास, और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। असंतुलन की स्थिति में व्यक्ति अवसाद, आत्मसमर्थन की कमी, और ऊर्जा की कमी महसूस कर सकता है।
मणिपूरक चक्र का संतुलन बनाए रखने के लिए योग, ध्यान, प्राणायाम, और विभिन्न चक्र बंधों का अभ्यास किया जा सकता है।
अनाहत चक्र |Heart Chakra):
1. स्थान (Location): अनाहत चक्र का स्थान हृदय क्षेत्र में है, जो छाती के बीच में स्थित है।
2. रंग (Color): इस चक्र का रंग हरा (Green) और कभी-कभी इसे चमकीला लाल या सोना भी बताया जाता है।
3. ध्वनि (Sound/Vibration): अनाहत चक्र का मूल मंत्र "यं" है, जो इस चक्र की ऊर्जा को शक्तिशाली बनाने में मदद करता है।
4. तत्व (Element): इस चक्र का संबंध वायु तत्व से है, जो प्राण, स्वतंत्रता, और सांगीतिकता का प्रतीक है।
5. ग्रंथि (Granthis): अनाहत चक्र से जुड़ी ग्रंथियाँ "हृदय" और "कंठ" में होती हैं, जो भावनात्मक बंधनों को प्रभावित कर सकती हैं।
6. जड़ तत्व (Element): अनाहत चक्र का जड़ तत्व पृथ्वी है, जो स्थिरता और सहास का प्रतीक है।
7. कार्य (Function): यह चक्र प्रेम, समर्पण, करुणा, और आत्मबलिदान के साथ जुड़ा होता है। यह हमारे भावनात्मक और आत्मिक संबंधों का केंद्र होता है और स्वास्थ्य, सुख, और समृद्धि का स्रोत बनाए रखता है।
8. शारीरिक स्थिति (Physical Aspect): अनाहत चक्र का सीधा प्रभाव हृदय, ब्रेस्ट, हाथ, और बाहु पर होता है। यह चक्र हृदय रोगों, रक्तचाप की समस्याओं, और भावनात्मक संबंधों में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
9. बैलेंस और असंतुलन (Balance and Imbalance): अनाहत चक्र का संतुलन रखने से व्यक्ति दया, सहानुभूति, और सत्य के साथ जीवन का अध्ययन कर सकता है। असंतुलन की स्थिति में व्यक्ति अस्तित्व में असुरक्षित, अशांत, और भावनात्मक संबंधों में कठिनाई महसूस कर सकता है।
अनाहत चक्र के संतुलन को बनाए रखने के लिए ध्यान, प्राणायाम, योग, और प्रेम से भरी गतिविधियों का अभ्यास किया जा सकता है।
विशुद्धि चक्र |Throat Chakra
1. स्थान (Location): विशुद्धि चक्र का स्थान कंठ क्षेत्र में होता है, जो गला के बीच में स्थित है।
2. रंग (Color): इस चक्र का रंग आसमानी नीला (Sky Blue) होता है, जो शांति, शुद्धता, और विनम्रता का प्रतीक है।
3. ध्वनि (Sound/Vibration): विशुद्धि चक्र का मूल मंत्र "हं" है, जो बोला जा सकता है और इस चक्र की ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करता है।
4. तत्व (Element): इस चक्र का संबंध आकाश तत्व से है, जो अच्छे संबंध, आत्म-विकास, और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है।
5. ग्रंथि (Granthis): विशुद्धि चक्र से जुड़ी ग्रंथियाँ "कंठ" और "आज्ञा" में होती हैं, जो व्यक्ति की स्वतंत्रता और आत्म-विकास को प्रभावित कर सकती हैं।
6. जड़ तत्व (Element): विशुद्धि चक्र का जड़ तत्व पृथ्वी है, जो स्थिरता और स्वतंत्रता को प्रतीकित करता है।
7. कार्य (Function): यह चक्र व्यक्ति की अभिव्यक्ति, सत्य, साहस, और स्वास्थ्यी प्रशिक्षण के साथ जुड़ा होता है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने विचारों, भावनाओं, और आत्मा को बाहर प्रकट कर सकता है।
8. शारीरिक स्थिति (Physical Aspect): विशुद्धि चक्र का सीधा प्रभाव कंठ, गला, मुंह, गले की नीचे की ओर होता है। इस चक्र का संतुलन बनाए रखने से गले की समस्याएं, वाणिज्यिक बोलचाल की कठिनाई, और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं कम हो सकती हैं।
9. बैलेंस और असंतुलन (Balance and Imbalance): विशुद्धि चक्र का संतुलन रखने से व्यक्ति में सत्य, आत्म-विकास, और सहास की भावना बढ़ती है। असंतुलन की स्थिति में व्यक्ति में जड़ता, असुरक्षा, और अभिव्यक्ति की कठिनाइयों का अनुभव हो सकता है।
विशुद्धि चक्र का संतुलन बनाए रखने के लिए ध्यान, प्राणायाम, योग, और सुस्त वाणिज्यिक बोलचाल का अभ्यास किया जा सकता है।
आज्ञा चक्र |Third Eye Chakra
1. स्थान (Location): आज्ञा चक्र का स्थान भ्रूमध्य में होता है, जो दोनों आंखों के बीच में स्थित है।
2. रंग (Color): इस चक्र का रंग अंबर (Indigo) होता है, जो बुद्धि, ज्ञान, और आत्मा को प्रतिष्ठित करता है।
3. ध्वनि (Sound/Vibration): आज्ञा चक्र का मूल मंत्र "ओम" है, जो इसकी ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करता है।
4. तत्व (Element): इस चक्र का संबंध आकाश तत्व से है, जो अच्छे संबंध, आत्म-विकास, और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है।
5. ग्रंथि (Granthis): आज्ञा चक्र से जुड़ी ग्रंथियाँ "आज्ञा" और "सहस्रार" में होती हैं, जो व्यक्ति की आत्मा के साथ उसके व्यक्तिगत और आध्यात्मिक संबंधों को प्रभावित कर सकती हैं।
6. जड़ तत्व (Element): आज्ञा चक्र का जड़ तत्व पृथ्वी है, जो स्थिरता और स्वतंत्रता को प्रतीकित करता है।
7. कार्य (Function): यह चक्र ज्ञान, आत्मा की दृष्टि, और आध्यात्मिक विकास के साथ जुड़ा होता है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने आत्मा को समझता है और अंतरदृष्टि का अनुभव करता है।
8. शारीरिक स्थिति (Physical Aspect): आज्ञा चक्र का सीधा प्रभाव मस्तिष्क, पीठ, दृष्टि, और नासिका पर होता है। इस चक्र का संतुलन बनाए रखने से मानसिक शांति, सुधारित विचारशीलता, और आत्मा के साथ संबंध में सुधार हो सकता है।
9. बैलेंस और असंतुलन (Balance and Imbalance): आज्ञा चक्र का संतुलन रखने से व्यक्ति में ज्ञान, बुद्धिमत्ता, और आत्मा की उन्नति होती है। असंतुलन की स्थिति में व्यक्ति में मानसिक कठिनाई, अस्तित्व में कमी, और अंतरात्मा के साथ संबंध में कठिनाई हो सकती है।
आज्ञा चक्र का संतुलन बनाए रखने के लिए ध्यान, प्राणायाम, योग, और सत्यिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए अभ्यास किया जा सकता है।
सहस्रार चक्र |Crown Chakra
1. स्थान (Location): सहस्रार चक्र का स्थान मानव शरीर के शीर्ष (शिरस्) या सिरहानुमुक्त (Crown) के ऊपर होता है।
2. रंग (Color): इस चक्र का रंग शुद्ध सफेद (White) या उज्ज्वल वियोलेट होता है, जो ब्रह्मा की ऊर्जा को प्रतिष्ठित करता है।
3. ध्वनि (Sound/Vibration): सहस्रार चक्र का मूल मंत्र "ओं" है, जो इसकी ऊर्जा को शक्तिशाली बनाने में मदद करता है।
4. तत्व (Element): इस चक्र का संबंध आकाश तत्व से है, जो अनंतता, अकेलापन, और अद्वितीयता का प्रतीक है।
5. ग्रंथि (Granthis): सहस्रार चक्र से जुड़ी ग्रंथियाँ "सहस्रार" और "आज्ञा" में होती हैं, जो व्यक्ति की उच्चतम बुद्धिमत्ता और आध्यात्मिक उन्नति को प्रभावित कर सकती हैं।
6. जड़ तत्व (Element): सहस्रार चक्र का जड़ तत्व पृथ्वी है, जो स्थिरता और स्वतंत्रता को प्रतीकित करता है, हालांकि यह चक्र अनंत और अद्वितीयता के साथ जुड़ा होता है।
7. कार्य (Function): सहस्रार चक्र व्यक्ति को आत्मा, अनंतता, और ब्रह्मा की ऊर्जा के साथ जोड़ता है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपनी अद्वितीय बनावट और अनंतता की अनुभूति करता है।
8. शारीरिक स्थिति (Physical Aspect): सहस्रार चक्र का सीधा प्रभाव सिर, दिमाग, और प्रमुख तंतुर तंतुरिती पर होता है। इस चक्र का संतुलन बनाए रखने से व्यक्ति में आत्मिक सुख, ऊँचाई की भावना, और सत्य ज्ञान की अनुभूति हो सकती है।
9. बैलेंस और असंतुलन (Balance and Imbalance): सहस्रार चक्र का संतुलन रखने से व्यक्ति में अद्वितीय ज्ञान, अनंतता की भावना, और ब्रह्मा की ऊर्जा का अनुभव होता ह
सात चक्र के देवता |7 Chakras God
- मूलाधार चक्र रहस्य इस चक्र के देवता भगवान गणेश है। ...
- स्वाधिष्ठान चक्र इस चक्र के देवता ब्रह्माजी है। ...
- मणिपुर चक्र रहस्य इस चक्र के देवता भगवान विष्णु हैं। ...
- अनाहत चक्र यह चक्र के देवता भगवान शिव हैं। ...
- विशुद्धि चक्र इस चक्र के देवता है रुद्र भगवान्। ...
- आज्ञाकार चक्र यह आत्मा का स्थान है। ...
- सहास्त्रार चक्र
शरीर के सात चक्र कैसे जगाए | How to activate Chakras in Human Body
शरीर के सात चक्रों को जागरूक करना या सकारात्मक रूप से स्थित करना आत्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है। यहां कुछ उपाय हैं जो आपको चक्रों को जागरूक करने में मदद कर सकते हैं:
1. ध्यान और योग: ध्यान और योग सात चक्रों को संतुलित करने में मदद कर सकते हैं। प्रत्येक चक्र के लिए विशिष्ट ध्यान और योगाभ्यासों का अभ्यास करें।
2. प्राणायाम: विशेष प्राणायाम तकनीकें, जैसे कि अनुलोम विलोम, चक्रों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकती हैं।
3. मंत्र जाप: प्रत्येक चक्र के लिए विशिष्ट मंत्रों का जाप करना आपको उस चक्र की ऊर्जा को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है।
4. चक्र स्टोन्स का उपयोग: चक्र स्टोन्स विभिन्न रंगों और क्रिस्टल्स का उपयोग करके चक्रों की ऊर्जा को संतुलित करने में मदद कर सकते हैं।
5. स्वास्थ्यप्रद आहार: स्वस्थ आहार और प्राकृतिक खाद्यों का सेवन करना भी चक्रों को सहारा प्रदान कर सकता है।
6. रंगों का उपयोग: प्रत्येक चक्र के लिए विशिष्ट रंग का उपयोग करना भी उसकी ऊर्जा को संतुलित करने में मदद कर सकता है।
7. साधना और स्वाध्याय: चक्रों के संतुलन को बनाए रखने के लिए नियमित साधना और स्वाध्याय का अभ्यास करें।
यदि आपने कभी भी योग या चक्र बालंसिंग की प्रैक्टिस नहीं की है, तो एक अनुभवी योग गाइड के साथ काम करना या एक साक्षर गुरु के पर्शन लेना भी फायदेमंद हो सकता है।
7 Chakras meditation
यहां सात चक्रों की ध्यान भावना का एक सामान्य गाइड है हिंदी में। आप इसे अपनी आध्यात्मिक प्रैक्टिस में शामिल कर सकते हैं। यह मेडिटेशन सीधे जमीं पर बैठकर या योग आसन में किया जा सकता है:
1. मूलाधार चक्र:
- अपनी आँखें बंद करें और ध्यान केंद्रित करें।
- सोचें कि आपकी कुंडलिनी ऊर्जा मूलाधार चक्र से ऊपर बढ़ रही है।
- मूलाधार चक्र का रंग लाल है, इसे विचार करें।
- "लं" बोलकर मंत्र जप करें।
2. स्वाधिष्ठान चक्र:
- ध्यान को स्वाधिष्ठान चक्र में ले जाएं।
- नाभि के नीचे एक ऊर्जा चक्र के रूप में इसकी स्थिति है।
- चक्र का रंग नारंगी है, इसे विचार करें।
- "वं" बोलकर मंत्र जप करें।
3. मणिपूरक चक्र:
- अपने नाभि के ऊपर चेता चक्र की ओर ध्यान केंद्रित करें।
- चक्र का रंग पीला है, इसे विचार करें।
- "रं" बोलकर मंत्र जप करें।
4. अनाहत चक्र:
- हृदय क्षेत्र के ऊपर ध्यान केंद्रित करें।
- चक्र का रंग हरा है, इसे विचार करें।
- "यं" बोलकर मंत्र जप करें।
5. विशुद्धि चक्र:
- गले के केंद्र में ध्यान केंद्रित करें।
- चक्र का रंग आसमानी नीला है, इसे विचार करें।
- "हं" बोलकर मंत्र जप करें।
6. आज्ञा चक्र:
- भ्रूमध्य पर ध्यान केंद्रित करें।
- चक्र का रंग अंबर (इंडिगो) है, इसे विचार करें।
- "ओं" बोलकर मंत्र जप करें।
7. सहस्रार चक्र:
- शिर के शीर्ष पर ध्यान केंद्रित करें।
- चक्र का रंग बैंगनी या यहाँत