शनि देव को खुश करने के उपाय | What Makes Shani Dev Happy
- शनिदेव को खुश करने के 6 उपाय
शनि देव के उपासना और पूजा के उपायों का पालन करना शनि ग्रह के कुप्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है और व्यक्ति को सुख-शांति प्रदान कर सकता है। यहां कुछ उपाय दिए जा रहे हैं जो शनि देव को खुश करने में मदद कर सकते हैं:
1. शनि देव की पूजा:
- शनि देव की पूजा के लिए शनिवार को समर्पित करें।
- शनि देव की मूर्ति या तंतु को साफ-सुथरा रखें और पूजा स्थल को पवित्र बनाएं।
2. तिल का दान:
- शनिवार को तिल का दान करें। तिल को गंगा जल में डालकर भी दान किया जा सकता है।
4. शनि देव के श्रृंगार का ध्यान:
- शनि देव को श्रृंगार करके पूजें, जैसे कि काला वस्त्र, तिलक, और तांबे की कटोरी।
5. शनि शांति यंत्र:
- शनि शांति यंत्र का ध्यान और पूजा करना शनि दोषों को शांति प्रदान कर सकता है।
6. दान एवं सेवा:
- गरीबों को खाना खिलाना, कपड़े बांटना और अन्य दान कार्यों में शामिल होना भी शनि देव को प्रसन्न कर सकता है।शनि देव को करें इन मंत्रों से प्रसन्न
शनि के उपाय लाल किताब | Shani Dev upay Lal Kitab
हिदु धर्म में भगवान शनि देव के जन्म की अनेकों कथाएं मौजूद है। जिसमें सबसे अधिक प्रचलित कथा स्कंध पुराण के काशीखंण्ड में मौजूद है। इसके अनुसार भगवान सूर्यदेव का विवाह राजा दक्ष की कन्या संज्ञा के साथ हुआ। भगवान सूर्यदेव और संज्ञा से तीन पुत्र वैस्वत मनु, यमराज और यमुना का जन्म हुआ। लेकिन संज्ञा भगवान सूर्यदेव के अत्यधिक तेज और तप सहन नहीं कर पाती थी। सूर्यदेव के तेजस्विता के कारण वह बहुत परेशान रहती थी। इसके लिए संज्ञा ने निश्चय किया कि उन्हें तपस्या से अपने तेज को बढ़ाना होगा और तपोबल से भगवान सूर्यदेव की अग्नि को कम करना होगा। इसके लिए संज्ञा ने सोचा कि किसी एकांत जगह पर जाकर घोर तपस्या करना होगा। संज्ञा ने अपने तपोबल और शक्ति से अपने ही जैसी दिखने वाली छाया को उत्पन्न किया। जिसका नाम सुवर्णा रखा।
इसके बाद संज्ञा ने छाया को अपने बच्चों की जिम्मेदारी सौंपा और उन्होंने तपस्या के लिए घने जंगल में शरण ले लिया। कुछ दिन बा भगवान सूर्यदेव औऱ छाया के मिलन से तीन बच्चों मनु, शनिदेव औरपुत्री भद्रा का जन्म हुआ। यह कथा हिंदु धर्म में काफी प्रचलित है।
दूसरी प्रचलित कथा
वहीं भगवान शनिदेव के जन्म की स्कंध काशी पुराण में एक और कथा मौजूद हैं। जिसके अनुसार कश्यप मुनि के वंशज भगवान सूर्यनारायण की पत्नी छाया ने संतान की प्राप्ति के लिए घोर तपस्या के जरिए भगवान शिव से संतान प्राप्ति का वर मांगा। भगवान शिव के फल से ज्येष्ठ की अमावस्या में भगवान शनिदेव का जन्म हुआ। सूर्य के तेज और तप के कारण शनिदेव का रंग काला हो गया। लेकिन माता की घोर तपस्या के कारण शनि महाराज में अपार शक्तियों का समावेश हो गया।
शनि देव की महिमा | Shani Dev Mahima
शनि देव की महिमा कई पुराणों और ग्रंथों में विस्तार से वर्णित है। यहां कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को हाथांतरित किया जा रहा है:
1. कर्मफल का दाता:
- शनि देव को कर्मफल के दाता के रूप में जाना जाता है। उनकी दृष्टि से व्यक्ति के कर्मों का सीधा सम्बंध होता है और वह अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार फल देते हैं।
2. शनि दोष निवारण:
- ज्योतिष शास्त्र में शनि दोष का महत्व बताया जाता है और लोग शनि दोष से मुक्ति प्राप्त करने के लिए शनि देव की पूजा और उपाय करते हैं।
3. शनि शान्ति:
- शनि शान्ति यंत्र, मंत्र, और अन्य पूजा पद्धतियां शनि देव की क्रिपा प्राप्त करने के लिए की जाती हैं। ये उपाय शनि के प्रभाव को कम करने और शुभ फल प्रदान करने में मदद कर सकते हैं।
4. उपकारी देवता:
- शनि देव को उपकारी देवता माना जाता है, जो अपने भक्तों की संगति में रहकर उन्हें अपनी शान्ति और कृपा से युक्त करते हैं।
5. सत्य और न्याय का प्रतीक:
- शनि देव को सत्य और न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। वे कर्मफल के अनुसार हर किसी को न्यायपूर्ण फल प्रदान करते हैं।
6. शनि देव की कठिनाईयों का पारित्य:
- शनि देव को जीवन में आने वाली कठिनाईयों और परीक्षणों का प्रतीक माना जाता है। उनकी कृपा और भक्ति से व्यक्ति इन कठिनाईयों का सामना कर सकता है और उनसे पारित हो सकता है।
शनि देव की महिमा को समझने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि उन्हें श्रद्धा भाव से पूजा जाए और उनके उपायों का नियमित रूप से पालन किया जाए। भक्ति, कर्मफल के प्रति समर्पण, और न्याय से युक्त रूप से जीवन जीने का प्रयास करना शनि देव के प्रति श्रद्धा को बढ़ा सकता है।
शनि देव व्रत कथा | Shani Dev Vratkatha
एक बार सभी नौ ग्रहों में इस बात को लेकर होड़ मची की कौन सबसे बड़ा और ताकतवर ग्रह है।
सभी ग्रह इस बात का निर्णय जानने के लिए राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे जो बहुत न्यायप्रिय थे। विक्रमादित्य ने नव ग्रहों की बात सुनी और नौ सिंहासन का निर्माण करवाकर उन्हें क्रम से रख दिया। वह नौ सिंहासन सुवर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से निर्मित थे। राजा ने शर्त रखी कि इस सिंहासन पर सभी नव ग्रह अपने आप स्वेच्छा से विराजित हो जाएं।
साथ ही, यह भी बताया कि जो ग्रह आखिर में सिंहासन पर बैठेंगे वो ग्रह सबसे छोटे कहलाएंगे।
इस शर्त के कारण आखिर में शनि देव (शनिदेव के प्रसन्न होने के संकेत) ने सिंहासन ग्रहण किया और वह सबसे छोटे ग्रह माने गए। शनि देव इससे क्रोधित हो गए और राजा को सावधान रहने के लिए बोलकर नाराज होकर चले गए। शीघ्र ही राजा की साढ़े साती शुरू हो हुई। राजा का जंगल में भूखे-प्यासे भटकना शुरू हो गया।
राजा के साथ एक के बाद एक बुरा होता चला गया। एक समय आया जब राजा अपांग हो गया। तब शनि देव ने राजा को दर्शन दिए और राजा को अपने द्वारा दी गई चेतावनी का अहसास कराया। राजा ने शनि देव से क्षमा मांगी तब शनी देव ने राजा को साढ़े साती से मुक्ति का उपाय बताया। शनि देव ने राजा को शनिवार का व्रत रखने और इस दिन चींटियों को आटा खिलाने के लिए कहा। राजा ने ऐसा ही किया और धीरे-धीरे शनिदेव का क्रोध शांत हो गया। शनि देव प्रसन्न हुए।शनिदेव ने राजा के सभी कष्ट हर उन्हें जीवन के सारे भौतिक सुखों का आनंद दिया।
शनिवार व्रत भोजन | Shanivar Vrat Bhojan
शनिवार का व्रत विभिन्न रूपों में मनाया जा सकता है और इसमें फलाहार एक सामान्य चयन होता है। फलाहार में आपको शाकाहारी और उपवासी आहार मिलता है जो व्रत के नियमों को पूरा करता है। शनिवार के व्रत के दिन, लोग अन्न, दाल, और अन्य अनाजी खाने से बचते हैं।
एक सामान्य फलाहार का अनुसरण करने के लिए आप निम्नलिखित खाद्य पदार्थों को शाम के समय खा सकते हैं:
1. उड़द दाल की खिचड़ी:
- उड़द दाल की खिचड़ी एक सत्विक और पौष्टिक विकल्प है। इसमें चावल, उड़द दाल, और स्वाद के अनुसार विभिन्न सब्जियां मिलाई जा सकती हैं।
2. साबूदाना खिचड़ी:
- साबूदाना खिचड़ी एक और लोकप्रिय फलाहार विकल्प है। इसमें साबूदाना, आलू, कटा हुआ धनिया, शहद, नमक, और लहसुन मिला सकता है।
3. फल सलाद:
- ताजगी भरे फलों का सलाद बनाएं, जैसे कि केला, सेब, नाशपाती, अनार, और कटी हुई कच्ची सब्जियां।
4. दही:
- सात्विक व्रत के दिन में दही बहुत ही पौष्टिक हो सकती है। इसमें नमक, काली मिर्च, और हरी धनिया मिला सकता है।
व्रती को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका भोजन सात्विक हो, उन्हें उचित पोषण मिले, और वे व्रत की सारी नियमों का पूरी तरह से पालन करें। साथ ही, व्रत का समापन व्रती को सावधानीपूर्वक करना चाहिए, जिसमें वे व्रत के नियमों का ध्यान रखें और सही तरीके से व्रत को खोलें।
शनिदेव की पूजा कैसे करनी चाहिए | Shani Dev Puja Vidhi
शनिदेव की पूजा को ईमानदारी, श्रद्धा और नियमों के साथ करना चाहिए। यहां कुछ सामान्य निर्देश दिए जा रहे हैं जो आप शनिदेव की पूजा के लिए अनुसरण कर सकते हैं:
सामग्री:
1. शनिदेव की मूर्ति या यंत्र
2. गंगाजल और पवित्र जल
3. चन्दन और कुमकुम
4. दीपक और घी
5. अगरबत्ती और धूप
6. सात बीज मूंग दाल
7. तिल, अस्त्र, और सौंफ़
8. पंचामृत: दही, शहद, गंगाजल, देसी घी, और दूध
पूजा की विधि:
1. शुभ मुहूर्त चयन:
- शनिवार का शुभ मुहूर्त जानने के लिए पंडित से सलाह लें।
2. पवित्र स्थान चयन:
- शनिदेव की पूजा के लिए एक शुद्ध और पवित्र स्थान चयन करें।
3. मूर्ति या यंत्र स्थापना:
- शनिदेव की मूर्ति या यंत्र को पूजा स्थान पर स्थापित करें।
4. पूजा की शुरुआत:
- गंगाजल से हाथ धोकर शुद्धि बनाएं और पूजा की शुरुआत करें।
5. दीप पूजन:
- दीपक को घी से भरकर प्रज्ज्वलित करें।
6. मन्त्र जाप:
- "ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः" मंत्र का जाप करें।
7. अर्चना:
- शनिदेव को चन्दन, कुमकुम, फूल, और पुष्पांजलि से अर्चना करें।
8. प्रसाद और चारिक:
- सात बीज मूंग दाल, तिल, अस्त्र, और सौंफ़ को शनिदेव को चढ़ाएं।
9. पंचामृत अर्पण:
- पंचामृत को मिलाकर शनिदेव को अर्पण करें।
10. आरती:
- शनिदेव की आरती गाएं और उन्हें प्रसन्न करें।
11. प्रदक्षिणा:
- पूजा का समापन करने के बाद मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा करें।
12. निवेदन:
- शनिदेव से अपनी मनोकामनाएँ मांगें और उनसे क्षमा याचना करें।
यहां दी गई पूजा विधि सामान्य तरीके से की गई है, लेकिन यदि आपको किसी पंडित या धार्मिक गुरु की सलाह चाहिए तो आप उनसे परामर्श कर सकते हैं। पूजा के दौरान ईमानदारी, भक्ति, और नियमों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
शनिदेव की 8 पत्नियां है | Shani Dev Wife
ध्वजिनी
धामिनी
कंकाली
कलहप्रिया
कंटकी
तुरंगी
महिषी
अजा
शनि देव के 10 नाम | Shani Dev 10 Names
- बभ्रु
- कृष्ण
- रौद्रान्तक
- पिप्लाद
- मंग
- यम
- सौरि
- शनैश्चर
- पिंगल
- कोणस्थ
7. शनि देव मंत्र | Shani Dev Mantra
शनि देव का बीज मंत्र | Shani Dev Beej Mantra
ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
शनि गायत्री मंत्र | Shani Dev Gayatri Mantra
ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्
सामान्य मंत्र
ॐ शं शनैश्चराय नमः।
शनि का पौराणिक मंत्र
ऊँ ह्रिं नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छाया मार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
शनि का वैदिक मंत्र
ऊँ शन्नोदेवीर- भिष्टयऽआपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तुनः।
साढ़ेसाती के प्रभाव से बचने का शनि मंत्र
ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम ।
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात ।
ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।
6. शनि देव की आरती | Shani Dev Aarti
- शनि आरती गाकर उनकी पूजा करें।
शनि देव की आरती
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव....
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव....
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव....
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव....
जय जय श्री शनि देव....
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
जय जय श्री शनि देव....
यह सभी उपाय ईमानदारी से और नियमित रूप से किए जाने चाहिए।
शनि दोष के लक्षण | Shani Dev ke Lakshan
शनि दोष एक ज्योतिषीय दोष है जो किसी की कुंडली में शनि ग्रह की अनुकूल दशा के कारण हो सकता है। शनि दोष के कुछ सामान्य लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं:
1. शनि की साढ़ेसाती:
- यदि किसी की कुंडली में शनि साढ़ेसाती में है, तो उसे शनि दोष कहा जा सकता है। साढ़ेसाती के दौरान शनि ग्रह की यात्रा करता है और व्यक्ति को विभिन्न परिस्थितियों में परेशान कर सकता है।
2. शनि की दृष्टि:
- अगर शनि ग्रह किसी भी ग्रह या कुंडली के स्थान पर अशुभ दृष्टि दे रहा है, तो भी शनि दोष हो सकता है। इससे व्यक्ति को आर्थिक, सामाजिक और आर्थिक संबंधों में परेशानियां हो सकती हैं।
3. शनि के ग्रहण का प्रभाव:
- यदि किसी की कुंडली में शनि ग्रहण हो रहा है या हुआ है, तो वह भी शनि दोष का कारण बन सकता है। ग्रहण के समय शनि की शक्ति बढ़ सकती है और उसका प्रभाव व्यक्ति पर हो सकता है।
4. कुंडली में शनि की दृष्टि:
- शनि दोष का एक और लक्षण है यदि शनि की अशुभ दृष्टि किसी ग्रह या भाव को कर रहा है। इससे ग्रह या भाव की स्थिति में असुविधाएं हो सकती हैं।
5. व्यक्ति के जीवन में कठिनाईयां:
- शनि दोष के कारण व्यक्ति को जीवन में कठिनाईयां, स्थायिता की कमी, विद्या में असफलता, आर्थिक समस्याएं, स्वास्थ्य समस्याएं आदि हो सकती हैं।
यदि किसी को ऐसे लक्षण अनुभव हो रहे हैं, तो वह एक विशेषज्ञ ज्योतिषी से सलाह लेकर शनि दोष के उपाय कर सकता है। ज्योतिषी व्यक्ति की कुंडली का विश्लेषण