कनकधारा स्तोत्र के चमत्कार | Kanakdhara Benefits

कनकधारा स्तोत्र पाठ व मंत्र जाप कब और कैसे करना चाहिए | Kanakdhara Shlok


 कनकधारा स्तोत्र के चमत्कार 

 अपार धन-संपत्ति पाने के लिए करें कनकधारा स्त्रोत का पाठ, भर जाएगी तिजोरी .

"कनकधारा स्तोत्र" माता लक्ष्मी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक प्रमुख साधना माना जाता है। धन, समृद्धि, और प्रेम की प्राप्ति के लिए इसे पठने का अभ्यास करने से लोग अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन महसूस करते हैं।


कनकधारा स्तोत्र पाठ व मंत्र जाप कब और कैसे करना चाहिए

शुक्रवार को माता लक्ष्मी को समर्पित करने का अनुसरण करना एक पूजनीय परंपरा है जो विभिन्न हिन्दू परंपराओं में पाई जाती है। लोग इस दिन माता लक्ष्मी का पूजन करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का इंतजार करते हैं।

"कनकधारा स्तोत्र" को नियमित रूप से पठने से मानव जीवन में सकारात्मक परिवर्तन हो सकता है, और आत्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है। धन, प्रेम, और सामृद्धिक जीवन की कामना करते हुए इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करना एक सकारात्मक कदम हो सकता है।


कनकधारा पाठ करने की विधि  | Kanakdhara Path Vidhi

"कनकधारा स्तोत्र" को पठने की विधि बहुत सरल है और इसे नियमित रूप से करने से आप माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। यहां एक सामान्य विधि दी जा रही है:


1. पूजन स्थल: स्तोत्र का पाठ करने के लिए एक शांत और पवित्र स्थान का चयन करें। आप इसे मंदिर, पूजा घर, या किसी धार्मिक स्थल में कर सकते हैं।

2. अध्ययन की विधि: स्तोत्र का पाठ करने से पहले, माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र की ओर ध्यान केंद्रित करें।

3. संकल्प लें: माता लक्ष्मी को प्राप्त करने का संकल्प लें और उनसे आशीर्वाद प्राप्ति की कामना करें।

4. ध्यान में रहें: मन को शांत करने के लिए स्तोत्र का पाठ करते समय ध्यान में रहें। विचारों को बाहर निकालें और माता लक्ष्मी की आबूझा में रहें।

5. "कनकधारा स्तोत्र" का पठन: स्तोत्र का पठन शुरू करें और ध्यानपूर्वक हर श्लोक को सुनें या पढ़ें। यह स्तोत्र संस्कृत में होता है, इसलिए यदि आप संस्कृत नहीं जानते हैं, तो आप उसका हिन्दी अनुवाद भी उपयोग कर सकते हैं।

कनकधारा स्तोत्र कब करना चाहिए

  • दिन का चयन: शुक्रवार को इस स्तोत्र का विशेष दिन माना जाता है, लेकिन यदि संभावना हो, तो आप इसे रोज़ाना भी पठ सकते हैं।
  • समापन: स्तोत्र का पठन करने के बाद, माता लक्ष्मी की पूजा अर्पित करें और अपने मन में उनसे आशीर्वाद प्राप्ति की कामना करें।


इस प्रकार, आप "कनकधारा स्तोत्र" को नियमित रूप से पठने के लिए इस विशेष विधि का पालन कर सकते हैं।


श्री कनकधारा स्तोत्रम् | Kanakdhara Stotram

कनकधारा स्त्रोत संस्कृत में 

अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।

अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।


मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।

माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।


विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।

ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।


आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।

आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।


बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।

कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।


कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।

मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।


प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।

मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।


दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।

दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।


इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।

दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।


गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।

सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।


श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।

शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।


नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।

नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।


सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।

त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।


यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।

संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।


सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।


दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।

प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।


कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।

अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।


स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।

गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।


कनकधारा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित | Kanakdhara Meaning Hindi


यहां "कनकधारा स्तोत्र" के श्लोकों का हिंदी अनुवाद दिया गया है:

1. अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम।

   अर्थ: हे मां, जो अपने अंगों में पुलकित होती हैं, जिनके हृदय पर हंसों की रेखाएं हैं, वह मुकुलों से सजे हुए हैं, जैसे भृगु मुनियों की भूषण रूपी रेखाएं हैं, जो ताम्रपत्रों की भाँति चमक रहे हैं।


2. मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।

   अर्थ: हे मां, जो बार-बार मुग्ध होती हैं, जिनके वचन सदैव मुकुंद के प्रेम में रमते हैं, जो प्रेम के त्रास के कारण पापों को दूर कर देती हैं, जो गतिगतियों में अपने भक्तों को प्राप्त होती हैं।


3. विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।

   अर्थ: हे मां, जो विश्वामरेन्द्र (ब्रह्मा) के पादों की गति से भ्रमित होती हैं, जो आनंद स्वरूपी भगवान के लिए हैं, जो मधुर रूप से भगवान की पूजा करने वाली हैं, जो मधुरासुर (दैत्य) के प्रति भी दया रखती हैं।


4. ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।

   अर्थ: हे मां, जो सब कुछ नियंत्रित करने वाली हैं, जो सदा सुखी होती हैं, जो सुख और दुःख के चक्र में रहने वाली हैं, जो अपने पति इन्द्र के साथ हैं।


5. आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।

   अर्थ: हे मां, जो अपनी आँखों को बंद करके मन को नियंत्रित करती हैं, जो हर्ष से भरी हुई हैं, जो मुकुंद के चेहरे की आनंद कंदम हैं, जो निमेषों में चिंतन करने में निरत हैं।


6. बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरि‍नीलमयी विभाति।

   अर्थ: हे मां, जो बाह्य और आंतरिक रूप से मधुर हैं, जो कौस्तुभ मणि से शोभित हैं, जो मुकुंद की हार की भाँति हरित (नीला) दिखती हैं।


7. कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।

   अर्थ: हे मां, जो भगवान के कटाक्ष से भी कल्याणकारी हैं, जो कमलालया (लक्ष्मी) की भाँति मंगलमयी हैं, मेरे लिए उनका कृपासिंधु हो।


8. कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।

   अर्थ: हे मां, जो कैटभासुर के स्वरूप में खेलती हैं, जिनके उपरे केशव के शेषनाग की भाँति मुकुट है, जो विद्युत की भाँति तेज कर रही हैं।


9. मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।

   अर्थ: हे जगत की माता, जो सम्पूर्ण जगत के लिए श्रेष्ठ हैं, वही भार्गव (पाराशर) की आनन्ददायिनी रूप में मेरी दिशा करें।


10. प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन।

    अर्थ: जिसका प्रभाव पहले ही मिल गया है, जो सभी मांगलिक प्रभावों का कारण है, वही मांगल्य रूपी पद मुझे प्राप्त हो, जो मधुमायनी (कमला) मन्मथ के साथ है।


11. मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।

    अर्थ: जिसका मध्य भाग बहुत आकर्षक है, जो मन्थर (विष्णु) के साथ सम्बन्धित है, जिसकी आँखों का अर्द्ध भाग मन्दाकिनी नदी की भाँति है, जो मकर (कांचीपुर) की नायिका हैं।


12. दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण।

अर्थ: हे मां, जो दया के वन में स्थित हैं, जो समृद्धि का सागर हैं, जिनकी आंखों के अंबु (जल) में नीलकंठी (शिव) रूपी कृष्णकण्ठ का अंश है, जो सुरमणि और सुवर्ण की ओटों की भाँति चमकती हैं, जिनका विहंग (हंस) स्वरूपी देवता शिर्षकी (ब्रह्मा) द्वारा स्तुत है।


13. दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।

    अर्थ: हे मां, जो पाप और पुण्य को दूर करने वाली हैं, जो दुष्कर्म और धर्म का साक्षात्कार करने में सहायक हैं, जो नारायण के प्रेम में रत हैं, उनके नयन (आंख) स्वरूपी जल की धाराएं हैं।


14. इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते।

    अर्थ: हे मां, जो विशिष्ट भक्तों के लिए भी अपनी इष्ट भावना से युक्त हैं, जिनकी दृढ़ नजर से तीन लोकों की प्राप्ति सुलभ है, वही मेरे लिए अपने पुष्कर या पुष्टि रूपी पाद में स्थित हों।


15. दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।

    अर्थ: हे मां, जिनकी दृष्टि पर दशरथ की बाला की भाँति अद्भुत है, जिनके पेट में कमल के अवलोकन से प्रकाशित होने वाली दीप्ति है, जिनकी दृष्टि से वृष्टि की भाँति पुष्टि होती है, उनके पुष्टि रूपी पाद की ओटे मेरे लिए हों।


16. गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।

    अर्थ: हे मां, जिन्हें गीर्देवता कहा जाता है, जिनका ध्वज गरुड़ वाहन है, जिनका स्वामिनी भूमि है, जिनका नाम शाकम्भरी है, जो शशिशेखर (शिव) की पत्नी हैं, जिनका स्वामी वल्लभ (कृष्ण) हैं, वही मेरी देवी हों।


17. सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै ‍नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।


    अर्थ: हे मां, जो सृष्टि, स्थिति और प्रलय के कारणों में स्थित हैं, जो सम्पूर्ण भूतों की गुरु हैं, उन विष्णुपत्नी महालक्ष्मी की ओर मैं नमस्कार करता हूँ।


18. श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै।

    अर्थ: हे मां, जिनकी श्रुति (वेद) से नमस्कार है, जो शुभ कर्मों के फल को प्रदान करने वाली हैं, जिनकी रति (भक्ति) स्थित है, जो गुणों का समुद्र हैं, उनकी ओर मैं नमस्कार करता हूँ।


19. शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।

    अर्थ: हे मां, जो शक्तिशाली हैं, जिनका निकेतन (मंदिर) शतपत्र (सहस्रपत्र) है, जो समृद्धि का सागर हैं, जो पुरूषोत्तम (विष्णु) की प्रिय हैं, उनकी ओर मैं नमस्कार करता हूँ।


20. नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै ।

    अर्थ: हे मां, जिनका मुख नालीक (शंख) की भाँति है, जो दुग्ध समुद्र की भाँति विशाल हैं, जो सभी भूतों की माता हैं, उनकी ओर मैं नमस्कार करता हूँ।


21. नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।

    अर्थ: हे मां, जिनकी आंखें चंद्रमा की भाँति सौम्य हैं, जो अमृत समुद्र की भाँति उत्पन्न हुई हैं, जो नारायण के प्रिय हैं, उनकी ओर मैं नमस्कार करता हूँ।


22. सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।

    अर्थ: हे मां, जो सम्पति को प्रदान करने वाली हैं, जिनसे सम्पूर्ण इंद्रियों को आनंद मिलता है, जो साम्राज्य, दान और विभूति का स्रोत हैं, जिनकी आंखें सर्वांग सुंदरता से भरी हुई हैं, उनकी ओर मैं नमस्कार करता हूँ।


23. त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।

    अर्थ: हे मां, जो द्वंदनों को नष्ट करने वाली हैं, जो दुरित (कष्ट) को हरने वाली हैं, जिनके पास सभी श्रेष्ठ गुण हैं, वही मेरी माता हों, उन्हें शान्ति और सुरक्षा के साथ मेरी ओर से नित्य पूजा जाए।


24.यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:।

संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।

जिस प्रकार सेवक कला के लाभ के लिए श्रीकृष्ण के कटाक्ष की पूजा करता है, उसी प्रकार मैं वाचन, आंग, और मानसिक सात्त्विक भावना के साथ मुरारि (श्रीकृष्ण) के हृदयप्रिय स्वरूप भगवती ईश्वरी की उपासना करता हूँ।


25.सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।

जो तुम्हारे हाथ में सरसिज (कमल) हैं, जिनके हाथ सफेद हैं और जिनमें अंशुक (चंदन) और गन्ध (कस्तूरी) की सुगंध है, उस भगवती वल्लभा (कृष्ण की पत्नी राधा) को मैं मनोज्ञ और त्रिभुवनभूतिकरि (तीनों लोकों की सृष्टिकर्ता) मानकर प्रसन्न करता हूँ।


26.दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।

प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।

तुम्हारा मुख सोने के कुम्भ की भांति है, और सभी सृष्टियों की संवाहिका होने के साथ ही तुम सभी लोकों की माता हो, जिस प्रकार शुद्ध और चारु जल से युक्त होकर सागर में प्लवित होती हैं, मैं प्रात:काल तुम्हारी पूजा करता हूँ, जो अनंत लोकों की नाथिनी हैं और अपने अमृत से पैदा हुई हैं।

27.कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।

अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।

तुम कमले (कमलाक्ष, श्रीकृष्ण) के कमल सा मुखवाले, जो करुणा के सागर में लीन हैं, और जिनके पादों में प्रेम से भरे हुए हैं, ऐसी तुम वल्लभा, मैं अपने हृदय से प्रथम पात्र के रूप में आपको देखना चाहता हूँ, जो अनुकंपा से भरा हुआ है।


28.स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।

गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।


जोलोग तुम्हें इन स्तोत्रों से स्तुति करत हैं, उनकी धरा तुम्हारी धरा बन जाती है, तुम त्रयीमयी (तीन लोकों की स्वामिनी) और त्रिभुवनमातर (तीनों लोकों की माता) होती हो, जो गुणों की अधिका और गुरुतर भाग्यशाली होने के लिए योग्य हैं, ऐसी भावना से तुम उनको प्रसन्न करती हो।

एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने