करमा धरमा व्रत कथा | Karma Dharma Vrat Katha
करमा पूजा कथा | Karma Puja Katha
प्रकृतिपर्व करमा गुरुवार को हर्षोल्लास पूर्वक शुरू हुआ। परंपरा के मुताबिक निर्जला उपवास कर रहीं कुंवारी लड़कियों ने मांदर, ढोल और झाल की धुन के बीच करम डाल रोपा। सांध्य बेला में पुजारी आए। दुल्हन की तरह सजाकर माता जावा रानी को करम डाल के आगे रखा गया। फिर कथा शुरू हुई। कथा के बाद उपवास करने वालों ने जल और फल ग्रहण किया। फिर शुरू हुआ नाच-गान का दौर। इस दौरान करम डाल के चारों ओर सामूहिक नृत्य कर देवता को रिझाया जाता रहा। मकसद भी सामूहिक, हर जगह हरियाली और खुशहाली हो। शुक्रवार को करम डाल का नदी में विसर्जन होगा। कथाहोने तक निर्जला रहीं कुंवारी कन्याएं
करमा धरमा की कहानी | Karma Dharma Ki Kahani
पौराणिक कथा कर्मा और धर्मा नामक दो भाईयों से जुड़ी है. कहा जाता है कि दोनों भाईयों ने अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान को दांव पर लगा दिया था. दोनों भाई काफी गरीब थे. उनकी बहन बचपन से ही भगवान से उनकी सुख-समृद्धि की कामना करती थी. बहन द्वारा किए गए तप के कारण ही दोनों भाईयों के घर में सुख-समृद्धि आई थी. इस एहसान का बदला चुकाने के लिए दोनों भाईयों ने दुश्मनों से अपनी बहन की रक्षा करने के लिए जान तक गंवा दी थी. इस पर्व की परंपरा यहीं से मनाने की शुरुआत हुई थी. इस त्योहार से जुड़ी दोनों भाईयों के संबंध में एक और कहानी है. जिसके मुताबिक एक बार कर्मा परदेस गया और वहीं जाकर व्यापार में रम गया. बहुत दिनों बाद जब वह घर लौटा तो उसने देखा कि उसका छोटा भाई धर्मा करमडाली की पूजा में लीन है. धर्मा ने अपने बड़े भाई के लौट आने पर कोई खुशी जाहिर नहीं की. यहां तक कि वह पूजा में ही तल्लीन रहा. इससे कर्मा क्रोधित हो गया और करमडाली, धूप, नैवेद्य आदि को फेंक दिया और भाई के साथ झगड़ने लगा. मगर धर्मा सबकुछ चुपचाप सहता रहा.
वक्त बीतता गया और कर्मा को देवता का कोपभाजन बनना पड़ा, उसकी सारी सुख-समृद्धि खत्म हो गई. आखिरकार धर्मा को दया आ गई और उसने अपनी बहन के साथ देवता से प्रार्थना किया कि उनके भाई को क्षमा कर दिया जाए. दोनों की प्रार्थना ईश्वर ने सुन ली और एक रात कर्मा को देवता ने स्वप्न देकर करमडाली की पूजा करने को कहा. कर्मा ने ठीक वैसा ही किया और उसकी सारी सुख-समृद्धि वापस आ गई.