Achman Mantra| आचमन मंत्र 

 Achman Mantra|आचमन मंत्र इन संस्कृत


 आचमन मंत्र का अर्थ

किसी भी पूजा-पाठ में शरीर का शुद्ध होना बहुत जरूरी होता है। शरीर को शुद्ध करने की इसी प्रक्रिया को आचमन कहा जाता है। आचमन का स्पष्ट अर्थ होता है पवित्र जल को देखो। हिंदू धर्म में पूजा-पाठ से जुड़ी कई प्रतिबद्धताओं और चिंताओं के बारे में बताया गया है। पूजा से पूर्व और पूजा संबंधी कई बातें पालन करना होता है। इन्हीं में से एक होती है आचमन की विधि। आचमन पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। शास्त्रों में आचमन की विधि, महत्व और लाभ के बारे में बताया गया है। पूजा से पहले आचमन करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसकी बिना पूजा पूरी नहीं की जाती है।
पूजा से पूर्व शुद्धि के लिए मंत्रोच्चारण के साथ शुद्ध जल को ग्रहण किया जाता है। शुद्ध जल को ग्रहण करने की यह प्रकिया ही आचमन कहलाती है।
  आचमन कसे करावे .


 आचमन करने की विधि

 पवित्रीकरण मंत्र

ॐ केशवाय नम:

ॐ नाराणाय नम:

ॐ माधवाय नम:

ॐ हृषीकेशाय नम:, इस मंत्र के द्वारा अंगूठे से मुख पोछ लें

ॐ गोविंदाय नमः यह मंत्र बोलकर हाथ धो लें

उपरोक्त विधि ना कर सकने की स्थिति में केवल दाहिने कान के स्पर्श मात्र से ही आचमन की विधि की पूर्ण मानी जाती है।

हथेली में हैं तीर्थ

आचमन करते समय हथेली में 5 तीर्थ बताए गए हैं-
 

1.देवतीर्थ

2. पितृतीर्थ

3. ब्रह्मातीर्थ

4. प्रजापत्यतीर्थ

5. सौम्यतीर्थ

कहा जाता है कि अंगूठे के मूल में ब्रह्मातीर्थ, कनिष्ठा के मूल प्रजापत्यतीर्थ, अंगुलियों के अग्रभाग में देवतीर्थ, तर्जनी और अंगूठे के बीच पितृतीर्थ और हाथ के मध्य भाग में सौम्यतीर्थ होता है, जो देवकर्म में प्रशस्त माना गया है। आचमन हमेशा ब्रह्मातीर्थ से करना चाहिए। आचमन करने से पहले अंगुलियां मिलाकर एकाग्रचित्त यानी एकसाथ करके पवित्र जल से बिना शब्द किए 3 बार आचमन करने से महान फल मिलता है। आचमन हमेशा 3 बार करना चाहिए।

आचमन और दिशाएं

आचमन करते हुए दिशाओं का ध्यान रखना बेहद आवश्यक है। आचमन करते हुए आपका मुख सदैव ही उत्तर, ईशान या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। अन्य दिशाओं की ओर मुख कर किया हुआ आचमन निरर्थक है और अपना उद्येश्य पूरा नहीं करता।

आचमन के बारे में स्मृति ग्रंथ में लिखा है कि

प्रथमं यत् पिबति तेन ऋग्वेद प्रीणाति।
यद् द्वितीयं तेन यजुर्वेद प्रीणाति।


पहले आचमन से ऋग्वेद और द्वितीय से यजुर्वेद और तृतीय से सामवेद की तृप्ति होती है। आचमन करके जलयुक्त दाहिने अंगूठे से मुंह का स्पर्श करने से अथर्ववेद की तृप्ति होती है। आचमन करने के बाद मस्तक को

अभिषेक करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। दोनों आंखों के स्पर्श से सूर्य, नासिका के स्पर्श से वायु और कानों के स्पर्श से सभी ग्रंथियां तृप्त होती हैं। माना जाता है कि ऐसे आचमन करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है। 


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