Shri Krishnastakam| Krishna Stotram| Vishnu Stuti|Krishna Bhajan| कृष्णस्टकम | कृष्ण स्तोत्र

 Shri Krishnastakam| Krishna Stotram| Vishnu Stuti|Krishna Bhajan| कृष्णस्टकम |  कृष्ण  स्तोत्र

।। श्री कृष्णाष्टकम् ।। 



भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं

स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम् |

सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं

अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम् || १ ||


मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं

विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् |

करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं

महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णावारणम् || २ ||


कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं

व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम् |

यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया

युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् || ३ ||


सदैव पादपंकजं मदीय मानसे निजं

दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम् |

समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं

समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् || ४ ||


भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं

यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् |

दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनं

दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसम्भवम् || ५ ||


गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं

सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम् |

नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलम्पटं

नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम् || ६ ||


समस्तगोपनन्दनं हृदम्बुजैकमोदनं

नमामि कुंजमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम् |

निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं

रसालवेणुगायकं नमामि कुंजनायकम् || ७ ||


विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायिनं

नमामि कुंजकानने प्रव्रद्धवन्हिपायिनम् |

किशोरकान्तिरंजितं दृअगंजनं सुशोभितं

गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम् || ८ ||

"

यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा

मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम् |

प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान

भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान || ९ ||


इति श्रीमज्जगदगुरु आदि शंकराचार्य भगवत:

कृतो श्री कृष्णाष्टकं सम्पूर्णम् ।




अर्थ:- " मैं भजता हूं उन्हें जो व्रजमण्डल के आभूषण हैं और पापराशी को समाप्त करते हैं और सदा अपने भक्तों के चित्त में रञ्जन करते हैं , जो नन्द बाबा के सुपुत्र हैं । जो मोरपंखगुच्छ को मस्तक पर धारण करते हैं तथा मधुर रागस्वर प्रदायी बांसुरी जिनके हाथ में है , उन प्रेमकला के सागर भगवान कृष्ण को नमस्कार है । "


अर्थ:- " जिनके आकर्षण के आगे कामदेव का गर्व चूर- चूर होता है , जिनके नेत्र विशाल सुंदर हैं , जो गोपांगनाओं को शोकमुक्त करते हैं उन कमलनयन को प्रणाम है । जिन्होंने अपने कोमल हाथ से पर्वत उठाया था , जो मधुर-सुंदरहास युक्त हैं , जिन्होंने देवराज इन्द्र के दर्प का दलन किया और जो गजराज समान हैं उन श्रीकृष्ण को प्रणाम है । "


अर्थ:- " जो कदम्ब पुष्पों को कर्णकुण्डल रुप में धारण करते हैं , जिनके गाल सुचारु सुंदर हैं , जो व्रजगोपियों के नायक हैं , जो दुर्लभ हैं उन श्रीकृष्ण को प्रणाम है । श्री यशोदा जी , गोपजनों और नन्द बाबा को परमानन्द देने वाले गोपनायक श्री कृष्ण को प्रणाम है । "


अर्थ:- " जिनके पादपंकज सदा मन में निवास करते हैं , जिनके घुंघराले केश हैं ,जो वैजयंती की चमकदार माला धारण करते हैं उन नन्दबाबा के पुत्र को प्रणाम है । जो समस्त दोषों का शमन करते हैं तथा समस्त लोकों के पालनहार हैं जो गोपजनों के मन में बसे हैं और नन्द बाबा की लालसा हैं उन्हें प्रणाम है । "


अर्थ:- " मैं प्रणाम करता हूं उन श्री कृष्ण को जो पापअंत कर धरा का भार उतारते हैं , जो दु:ख रुपी संसार सागर से पार लगाते हैं , जो यशोदा जी के किशोर हैं और जो चित्त को चुरा लिया करते हैं । जिनके नेत्र अत्यन्त सुंदर हैं जो सदा सज्जनों से घिरे रहते हैं और वन्दित होते हैं और जो नित नये प्रतिदिन नवीन औेर नूतन प्रतीत होते हैं । "


अर्थ :- " नमस्कार है उन गोपनन्दन को जो गुणाकर-सुखाकर-कृपाकर हैं जिनकी कृपा परम है तथा जो देवों के शत्रुओं का नाश कर देते हैं । जो नित नवीन लम्पट लीलाऐं करते हैं और जो घनमेघ समान सुंदर हैं तथा जो बिजली के समान चमकदार पीताम्बर धारण करते हैं । "


अर्थ:- " जिनके द्वारा समस्त गोपजन प्रमुदित और प्रसन्न रहते हैं । जो कुञ्ज के मध्य में रहकर उसी प्रकार सभी के मन को खिलाते हैं जैसे सूर्य की उपस्थिति से कमल खिला करते हैं । प्रणाम उन कुंज नायक को जो भक्तों के मनोरथों को पूर्ण करते हैं । जिनके कृपाकटाक्ष दु:खों का नाश करते हैं और जो बांसुरी पर मधुर धुन और राग छेड़ते हैं । "


अर्थ :- " जो विवेकवान गोपियों की धारणा रुपी शय्या पर सदा विश्राम करते हैं , तथा जिन्होंने वनअग्नि का पान किया था गोपजनों को बचाने हेतु । मैं प्रणाम करता हूं उन श्री कृष्ण को जो किशोरकान्ति से सम्पन्न हैं तथा जिनके नेत्र अञ्जन ( काजल ) से सुशोभित हैं । जिन्होंने गजेन्द्र को कालरुप ग्राह से मुक्त करा मोक्ष प्रदान किया और जो श्री लक्ष्मी जी के स्वामी और नाथ हैं उन्हें नमस्कार है । 

अर्थ:- " हे कृष्ण ऐसी कृपा करें की मैं सद‍ा आपकी लीला , कथा , महिमा का वर्णन करत‍ा रहूं प्रत्येक स्थिति में । जो भी इन अष्टकाद्वय का पाठ करता रहता है वह कृष्ण भक्ति से जन्मजन्मान्तर तक सम्पन्न रहता है । "

श्री कृष्णस्टकम को श्री कृष्णा  कृपा कटाक्ष  स्तोत्र भी कहा  जाता है.

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